प्यार तुम, अनुभूति तुम, आयाम बन कर क्या करोगे?
तुम हृदय के भाव हो, आवाज़ बन कर क्या करोगे?
ज़िन्दगी की तुम महक, तुम जीवन की लालसा हो
देह की सम्पूर्णता जब, भाग बन कर क्या करोगे?
स्वास में, उच्छ्वास में, विश्वास में हर स्वर तुम्हारा
बस गए हो जब लहू में, याद बन कर क्या करोगे?
दो मनों की धड़कनों के राग का अनुवाद हो तुम
रागिनी बन बह रहे हो शब्द बन कर क्या करोगे?
दर्द की लय पर रची मुस्कान हो मेरे अधर पर
साथ हो अनगिन जनम, उम्र बन कर क्या करोगे?
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Book by Dharmpal Mahendra Jain:
अहा, सरस, कविता जैसी कविता ????