शिवेन्द्र के उपन्यास ‘चंचला चोर’ से उद्धरण | Quotes from ‘Chanchala Chor’, a novel by Shivendra
चयन: विक्रांत (शब्द अन्तिम)
“अँधेरे में, कुछ न कुछ अब भी सबकी धुकधुकी बंधती है। ख़ासकर तब जब अँधेरा क़ब्रिस्तान के सामने ही हो। मरे हुए के लिए हममें अब भी इतनी संवेदना बाक़ी है।”
“रात भी एक दिन है। सोने जाना, काम पर जाने जैसा ही होता है। आराम करना ताकि कल के लिए तैयार हो सकें। नींद जागने का भय है कि काम पर वो हमें सोने नहीं देंगे। हम काम के लिए सोते हैं, नींद न आने पर नींद की गोलियाँ लेकर सोते हैं। अगर हम काम नहीं करेंगे, वे हमें भूखों मार देंगे। मैं सोचता हूँ। सोचना कोई काम नहीं है और नींद है कि आ नहीं रही।”
“आजी की उम्र सौ से अधिक है और वह हज़ारों साल पुरानी कहानियों की तरह जी रही हैं… उनके होंठों पर गीत रहते हैं―हर मौसम के, मेहनत के और नींद के। जब उन्हें कुछ करना होता है, वह किसी का मुँह नहीं ताकतीं। बस अपना गीत गाती हैं और मनों अनाज अकेले कूट लेती हैं, गाय के लिए चरी काट लाती हैं, महीने भर का दाल दर डालती हैं। उनके देह में बिल्कुल ताक़त नहीं बची है, उनके गीतों में बहुत ताक़त है।”
“नींद एक नगर है, वहाँ सपने रहते हैं और बिछुड़ी यादें सोती हैं और महीन से महीन इच्छा भी सच हो जाती है। बहुत सारा नज़रअंदाज किया हुआ यहाँ एकदम से सामने आ जाता है।”
“सपने हमारे सबसे कल्पनाशील विचार हैं। वे झूठ नहीं होते, उनका एक अर्थ होता है।”
“सुबह, अक्सर निर्वाण पाए व्यक्ति-सी लगती है और सुबह के लोग समाधि में जागे आदमी से। सबकुछ भागता हुआ भी थिर होता है। शोर, कलरव की कोई लय लगती है। बिना संवाद के भी हम हर शै से जुड़े होते हैं।”
“प्रेमिकाएँ कभी-कभी हमारे बारे में ऐसी बातें जान जाती हैं, जिन पर हमारी नज़र भी नहीं पड़ती।”
“अब तो डायरेक्टर बहुत टेक्निकल हो गए हैं और लेखक की कल्पना पर ईंट जोड़ने वाले मज़दूर भर लगते हैं, लेकिन कभी फ़ीलिंग वाले डायरेक्टर भी रहे होंगे। कैमरे को क़लम समझने वाले, सोचने वाले, ख़ूबसूरती को महसूस करते हुए खो जाने वाले।”
“टेलीविज़न-सिनेमा सबकुछ गाँव की ओर लौट रहा है, बस उसे बनाने वाले अब भी गाँव के नहीं हैं।”
“देखना तुम्हारे सिर यह गुनाह न रह जाए कि तुमने दुनिया में किसी को नाराज़ ही नहीं किया।”
“रिस्क न लेना दुनिया का सबसे बड़ा रिस्क है।”
“सफल होने के लिए चालाक होना ज़्यादा ज़रूरी है।”
“प्रेम करने के लिए सबसे बेहतर नाम कल्पना है और सबसे बेहतर जगह निर्वस्त्र आकाश और दुनिया से बेख़बर वहाँ जाने का एक ही ढंग है―चिड़िया हो जाना।”
“यह आदमी का गिल्ट है कि यह प्रेम करने के लिए नदियों, पहाड़ों और जंगलों की ओर भागता है और आसमान का एकांत खोजता है। आदमी शहर बसाकर दुखी है।”
“क्या ग़ज़ब बात है, लेकिन एक पूरा आदमी वस्तुतः आधा है। हम अलग-अलग जन्म लेते हैं और आधा-आधा जीते हैं। पूर्णता के बस दो-चार पल ही हमारे हिस्से आते हैं, बाक़ी का यह जीवन अधूरेपन के आकर्षण में घट रहा है।”
“मेरे पिता का नाम किसान है और माँ का घरेलू महिला।”
“किसी सोए हुए से लिपटकर सो जाना प्रेम में कितना अधिकार है!”
“गाँव―एक सहेजकर रखी गई याद। बचपन इसका पर्यायवाची है और बीता हुआ वक़्त संगी।”
“यह ग़लत है कि सबकी सुबह एक साथ हो जाए। जो सपने देखते हैं, उनकी अपनी सुबह होनी चाहिए।”
“दुनिया में जो कुछ भी जटिल है, दुनिया के गाँवों में उसकी सबसे आसान व्याख्या है।”
“अगर बिल्ली का रोना अशुभ माना जाता है तो आदमी का रोना क्यों नहीं?”
“कबड्डी एक दार्शनिक खेल है। इसमें कोई भी हमेशा के लिए नहीं मरता। जैसे ही दूसरे पाले में कोई मरता है, पहले पाले में एक आदमी जी उठता है।”
“आदमी पत्थर पर नहीं, उम्मीद पर अपना माथा फोड़ता है।”
“जीवन बढ़ते-बढ़ते वृद्ध हो जाता है, अपनी याद्दाश्त खोने लगता है, तब भी वह अपनी सारी स्मृतियाँ अपने कलेजे से चिपकाए रखता है।”
“कभी-कभी लगता है कि काश हम पेड़ होते और हमारी ज़िन्दगी में भी पतझड़ आते और हम अपनी सारी स्मृतियों को गिरा देते और फिर नये मौसम में, मन में जो नयी कोंपलें आतीं, सिर्फ़ उन्हीं को सींचते और जब मौसम बदलता तो फिर एक पतझड़ आता! मगर नहीं, हम आदमी हैं। हम कोशिकाओं से नहीं, स्मृतियों से बने हैं।”
“पक्षी भी हमारी ही बोली बोलते हैं। अब हम उनकी बात समझ नहीं पाते क्योंकि हमने अपनी भाषा बदल ली है।”
“संवेदना की दुनिया सबसे गहरी होती है। वहाँ कुछ भी निर्जीव नहीं होता, कोई भी भाषा पराई नहीं होती… वहाँ अपनी परछाईं भी एक पूरा का पूरा व्यक्ति होता है।”
“हर उस आदमी को सपने आते हैं जो सचेत होकर जी रहा है।”
“लोग यह मानते हैं कि सपनों के कारण उनकी नींद टूट जाती है। लेकिन यह सच नहीं है। सच यह है कि सपने हमारी नींद पकड़ लेते हैं। यही उनका काम है। वह हमें सुलाए रखना चाहते हैं। यही बात है कि तुम जाग नहीं पाते।”
“सब नियम तो बड़े लोगों के बनाए हुए हैं, बच्चों की तो अपनी कोई ज़िन्दगी ही नहीं।”
“माँ चाहे कितनी ही बुरी थी, उससे डर नहीं लगता था। पिता की अच्छाई में भी एक हदस थी।”
ऐसा नहीं है कि हमारे पैर सिर्फ़ गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी पर टिके हुए हैं। यहाँ और भी बहुत से बल हैं जो हमें रोके हुए हैं और उनमें बिना शक सबसे शक्तिशाली है पिता-बल। (दुर्भाग्य से इस बल का ज़िक्र विज्ञान की किसी पुस्तक में नहीं है)”
“ख़ुशी का मतलब ही होता है ख़्याल रखना।”
“तारे हर बच्चे की कहानी जानते हैं। वे हर पल उन्हें निहारते रहते हैं और इसी से उन्हें चमकने की ताक़त मिलती है।”
“गाँव में अँधेरा भी बहुत खुला-खुला होता है, पर शहर की रोशनी में आदमी तक ख़ुद को ढाँककर जीता है।”
“हर पुराने ज़माने में एक नया ज़माना जीवित रहता है।”
“नशा निराशा का बल है; सुरूर जीने का साहस।”
“हम इतने आज़ाद समय में हुए हैं कि अपने सपने के लिए अपने बाप से लड़ सकते हैं, लेकिन फिर हमारे लड़ने के सारे हथियार तोड़ दिए जाते हैं। हमारे सपने या तो ख़रीद लिए जाते हैं या कुचल दिए जाते हैं। हम सपने देख सकते हैं मगर अपने लिए नहीं। यह दुनिया के इतिहास में अब तक का सबसे ग़ुलाम समय है।”
“ज़िन्दा सिर्फ़ वही रह सकता है जो हिटलरों के लिए हथियार बना सके या फिर ऐसे चुटकुले जिसे सुनकर जनता शासन और कुशासन, आज़ादी और ग़ुलामी, लोकतंत्र और अधिनायक तंत्र का अंतर भूल जाए।”
“सवेरा का एक मतलब अंत भी तो होता है।”
“यह दुनिया हमने अपने जीने के लिए बनायी थी और अब यहाँ ज़िन्दगी की ही परवाह किसी को नहीं।”
“सुंदर चीज़ें भी वैसे ही जलती हैं, जैसे साधारण चीज़ें।”
“थके हुए आदमी के लिए भात नींद की गोली है।”
“हमारी पीढ़ी में एक खिजलाहट है। संतोष तो हमें चाहिए ही नहीं, बेचैनी हमारी तरक़्क़ी है।”
“मैंने गाँव के आसमान को देखा। यहाँ सबकुछ कितना खुला-खुला है… बस विचार नहीं।”
“गाँव और शहर एक-दूसरे से मिल रहे हैं मगर सिर्फ़ अपनी बुराइयों को ले रहे हैं; सिर्फ़ अपनी बुराइयाँ दे रहे हैं।”
“जो पूर्ण मुक्त है, जिसकी एक नज़र भर से हर बंधन खुल जाते हैं, जो हमें हर चीज़ से मुक्त करता है, उस प्रेम तक के लिए एक ही खूँटा होता है।”
“बहुत से कृष्ण आकर चले जाएँगे और दुनिया की विडम्बना यह होगी कि उन्हीं के समय में महाभारत होंगे।”
“जब हम सोते हैं, रात कितनी ख़ामोशी से जागी रहती है। जागकर दिन भर हम कैसे-कैसे उधम रचते हैं; जागकर कोई इतना शांत कैसे रह सकता है? या फिर यही असली जागना है—थिर हो जाना, स्व से निकलकर सब जगह फैल जाना, इस तरह निशब्द हो जाना कि हम सुन सकें सृष्टि का हर स्वर।”
“आप सबकुछ से लड़ सकते हैं, कहानियों से कैसे लड़ेंगे?”
“आडम्बर सिर्फ़ धर्म में नहीं होते, क्रान्ति के भी अपने ढकोसले होते हैं।”
“क्रान्ति कभी असफल नहीं होती और न ही सपने कभी पराजित होते हैं। वे एक बर्बर समय के विरोध में जन्मे होते हैं और उनका पूरा होना नहीं बल्कि लहरों के ख़िलाफ़ उनका तैरना उनकी जीत है।”
“हम बोलते हैं मगर वह कौन है जो हमारे भीतर से बोलता है? हम देखते हैं मगर वह कौन है जो हमारे भीतर से देखता है?”
“जिसे जहाँ सुकून मिले, उसे वहाँ छोड़ देना चाहिए।”
“यह कितना अजीब है कि हम पच्चीस साल पढ़ते हैं और सबकुछ सीखते हैं। मगर इतने सालों में जो सबसे ज़रूरी है, वहीं नहीं सीख पाते―सोचना!”
“नींद भी एक ग़ज़ब माया है! वह रात को भोर कर देती है। अँधेरे को उम्मीद के सिरहाने तक ले आती है। लोग सिर्फ़ सोकर उठते हैं और उन्हें लगता है कि दिन बदल चुका है। नींद बदलाव का झूठा वहम देती है―अ फ़ाल्स होप। अगर यह नींद न होती तो कब की क्रान्ति हो चुकी होती।”
“यह प्रकृति परिवर्तन विरोधी है। यहाँ रोज़-रोज़, सबकुछ एक ही तरह से घटता है। सुबह-दोपहर-रात; जाड़ा-गर्मी-बरसात। हर नया जीवन वही पुरानी ज़िन्दगी है। पैदा होने से लेकर मरने तक सबकुछ एकरस।”
“दुनिया की सारी गड़बड़ियों के लिए यह नींद ही ज़िम्मेदार है कि सबसे मुश्किल दौर में भी यह हमें अपने सुकून से भर देती है।”
“अगर यह नींद न होती तो हम यह जान चुके होते कि पृथ्वी एक जेल है जहाँ हम जीने की सज़ा काट रहे हैं और तब चाहे भले हम क्रान्ति न करते, पर ज़िन्दगी को इतने सुकून से न सहते। इस पैटर्न को, इस जेल को तोड़ने की कोशिश ज़रूर कर रहे होते और यह नारा सही जगह पर लगा रहे होते कि ‘एक धक्का और’।”
“बचपन से ही मुझे ऐसा दिखता है कि हँसी से आसपास के सभी निर्जीव, सजीव हो उठते हैं।”
“किसी के होंठों तक पहुँचना सुनसान आधी रात को श्मशान में जलती किसी आग तक पहुँचना है। हिम्मत बार-बार गले की ढालू गली या कान की लौ को छूकर पीछे हट जाती है। लेकिन एक बार आप उस कोमल लपट को छू लो, फिर कुछ भी मायने नहीं रखता―घर, डर, समाज, श्मशान।”
“अगर तुम लड़कियों को उनके बचपन में देखोगे तो पाओगे कि हर लड़की असल में तुम्हारी सपनप्रिया जैसी होती है… काश! कि हमें इस तरह गढ़ा न जाता, हम पर लड़की होने को लादा न जाता।”
“स्वर्ग उसे नहीं कहते जहाँ देवता रहते हैं, बल्कि यह वह स्थान है जहाँ दुनिया की सबसे ज़हीन स्त्रियों से उनके सारे अधिकार छीन लिए जाते हैं।”
“सिर्फ़ उनकी देह को भोगने के लिए लोग आतंकवादी भी बन रहे हैं और लेखक भी।”
“यह पृथ्वी जिसे हम अपना घर कहते हैं, दरअसल यह सुनार की एक बहुत बड़ी भट्टी हैं, जहाँ लड़कियों को पिघलाया जा रहा है, मनचाहे साँचे में ढाला जा रहा है, महीन और पैने औज़ारों से तराशा जा रहा है और फिर उन्हें छोटी-छोटी झिल्लियों में पैक करके बिकने के लिए टाँग दिया जा रहा है और हम समाज और परिवार में रहने वाले इंसान उनके ग्राहक भर होकर रह गए हैं।”
“अगर कोई लड़की अपने मन से जीने की कोशिश भी करेगी तो तुम्हारी दुनिया उसे पागल कर देगी।”
“ज़रूरी नहीं कि हम सबकुछ कहें ही, कुछ चुप्पियाँ कहने को और गाढ़ा करती हैं।”
“आँसू श्रापित सच्चाइयाँ हैं। सच्चाइयाँ जो हम कह नहीं पाते।”
“कितनी ही लड़कियाँ थीं जो अंतरिक्ष में जा सकती थीं, हिमालय को हरा सकती थीं, फ़िल्में बना सकती थीं, पर उनकी ज़िन्दगी आलू-गोभी बनाने में ही ख़त्म हो गई। जो देश दुनिया को दिशा दे सकती थीं, वे रोटी बेलती रहीं, जिनका प्रेम इस दुनिया को और ख़ूबसूरत बना सकता था, उन्होंने ज़हर खा लिया, जो अकेले रहकर इस धरती को थाम सकती थीं, हमने उन्हें बदचलन बना दिया।”
“बाँस के जंगल में चुड़ैलें लौट आयी हैं और ठहाके मार-मारकर हँस रही हैं। यह वे लड़कियाँ हैं जिन्होंने एक से अधिक बार प्रेम किया। जब किसी लड़के के साथ यह सामान्य-सी बात घटती है, हम उसे कृष्ण बना देते हैं, जब कोई लड़की कृष्ण के रस्ते चल पड़ती है, वह चुड़ैल हो जाती है।”
“हम सच जानना चाहते हैं और झूठ सुनना चाहते हैं।”
“प्रेम में जब भी प्रश्न उठे, एक-दूसरे की आँखों में झाँक लेना चाहिए। हम बहुत-सी ग़लतफ़हमियों से बच सकते हैं।”
“दुनिया की पहली आग चकमक पत्थरों के टकराने से नहीं बल्कि दो लोगों के अलग होने से पैदा हुई थी। सूरज तब से धधक रहा है। पृथ्वी को भी वह ग़म भूलने में लाखों साल लगे।”
“ईश्वर कितना आसान था, उसे समझने की यात्रा में हम सबने उसे कितना जटिल बना दिया।”
“हमारे भीतर, कहीं न कहीं सबकुछ सुरक्षित होता है। भूलने के नाम पर हम कुछ भी नहीं भूलते।”
“हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि हमारे पास कहानियाँ हैं। वे हमें भटकाव से बचाती हैं और उस समय हमारा रास्ता बनती हैं जब हमारे पास और कोई रास्ता नहीं बचा होता। युगों के अनुभव, पीढ़ियों के विचार और मनुष्यों की संचित संवेदना को व्यक्तिगत या सामूहिक कल्पना के सूत में पिरोकर एक कहानी बनती है और हम हैं कि कल्पना को झूठ समझकर पूरी की पूरी कहानी को ही मनगढ़ंत मान लेते हैं जबकि सच्चाई यह है कि कहानियाँ ही हमारी हक़ीक़त हैं।”
“बरगद के सघन एकांत सिर्फ़ वही सह सकता है जिसमें तने से जड़ निकालने की क़ाबिलियत हो।”
“किताबों में प्रेम के लिए कुछ भी कर गुज़रने के पाठ होते हैं और ज़िन्दगी में चुपचाप आँसू बहाते रहने की नसीहत।”
“यह बहुत ज़रूरी है कि जिसने हमें सताया हो, हम उसके सामने ही रोएँ।”
“जो चीज़ अतीत हो गई हो, हम उसे कैसे भी तोड़-मरोड़ सकते हैं, अगर उसके एकमात्र जानकार हम हों तो!”
“गाँव में जब भी बँटवारे की बात उठती है, किसान एक बार रोता ज़रूर है।”
“ऐसा क्यों होता है कि कहीं भी मीठा रख दो, चीटियाँ उन्हें ढूँढ लेती हैं और हम आदमी अपने रिश्तों में ज़रा-सी मिठास नहीं खोज पाते!”
“तकनीकी उन्नति कर रही है और संवेदनाएँ खाई में गिर रही हैं।”
“एक ताक़तवर कहानी हमें इतिहास भुला देती है और ज़िन्दगी अपनों की मौत। भूलना शायद उतना बुरा नहीं है, जितना कि बिना सबक के भूलना। भगत सिंह को हम इसलिए याद करते हैं क्योंकि हम उनसे सबक सीखते हैं। पर लड़कियों का मरना हमारे लिए सबक नहीं है, वह एक घटना मात्र है।”
“राम और रावण की लड़ाई में सिर्फ़ रावण ही नहीं मारा गया था बल्कि एक संस्कृति की भी हत्या हुई थी और उस संस्कृति में जिसके एक पक्ष की नुमाइंदगी शूर्पनखा कर रही थी, कम से कम इतनी छूट तो थी ही कि एक स्त्री अपनी इच्छा से विवाह कर सके और पति के मरने के बाद उसे ज़िन्दा न जलाया जाए और यदि उसे फिर से प्रेम हो जाए तो सात्विकता का पत्थर गले में बाँधकर डूबने की अपेक्षा वह अपने प्रेम का इज़हार कर सके। पर लक्ष्मण ने शूर्पनखा की नाक काटकर उस संस्कृति की भी नाक काट दी जिसमें स्त्रियों के लिए थोड़ी-बहुत जगह हुआ करती थी। क्या औरतें कभी यह समझ पाएँगी कि दीवाली उनकी भी हार का त्यौहार है?”
“परिवार एक स्वार्थी संस्था है।”
“एक स्त्री के चेहरे पर ख़ुशी वैसे ही फबती है, जैसे बुद्ध के चेहरे पर शान्ति।”
“हमारे भीतर बहुत कुछ के साथ-साथ एक जेल भी है और कभी-कभी हम ख़ुद को उस जेल में बंद कर लेते हैं। समय की हालत यहाँ अपने ही जाल में फँसी मकड़ी की तरह होती है और जिन्होंने भी इसे महसूस किया है, वे जानते हैं कि दुनिया में इससे बढ़िया बात और कुछ नहीं हो सकती। और इसलिए जो भी एक बार इस जेल को खोज लेता है, शायद ही कभी यहाँ से लौट पाता है!”
“संविधान की उम्मीद झूठी नहीं है—सज़ा के बाद व्यक्ति सचमुच में बदल जाता है। किसी को टापू पर छोड़ दो, जब वह लौटेगा, सारी दुनिया को गले लगा लेगा।”
“कई बार अपने सपने को पाने के लिए संघर्ष करते हुए हम बड़े ही संवेदनशील दिखते हैं, पर हमारी असलियत तब खुलती है जब हम उस सपने को पा लेते हैं।”
“जब हम ख़ुश रहते हैं, यह दुनिया कितनी बदल जाती है!”
“सपने हमें बदल देते हैं, वे पूरे हों या अधूरे रह जाएँ, हम अकेले हो जाते हैं।”
“यह कितना बड़ा अन्याय है कि बस औरतें ही जन्म दे सकती हैं!”
“हम जहाँ तक भी पहुँचते हैं, अपने पहुँचने को साथ लेकर ही चलते हैं।”
“क्या यह हमारा कर्त्तव्य नहीं बनता कि हम अपनी माँ को शुरू से जानें―उनके बचपन से, जैसे कि वह हमें हमारे बचपन से जानती है?”
“गाँव-समाज में रहने की कुछ बुराइयाँ हैं, कुछ सही चीज़ें हम चाहकर भी नहीं कर पाते और कुछ बुराइयाँ हम तब तक नहीं छोड़ सकते जब तक कि उन्हें समाज नहीं छोड़ देता।”
“पैदा होना कितनी बड़ी हिंसा है!”
“यह दुनिया माँओं को किस क़रीने से मारती है कि वो एक साथ मर भी जाती हैं और जीवित भी रहती हैं!”
“जब हम प्रेम करते हैं तो और कुछ नहीं करते, जब हम कहानी में होते हैं तो कुछ और करना सम्भव नहीं होता और एक स्त्री की कल्पना इन दोनों से भी सघन होती है।”
“आदमी औरत को सबकुछ देने को तैयार है, सिवा उसके सपनों के।”
प्रियम्वद के उपन्यास 'धर्मस्थल' से उद्धरण