श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास ‘राग दरबारी’ से उद्धरण | Quotes by Shrilal Shukla from ‘Rag Darbari’

 

“भागो, भागो, भागो। यथार्थ तुम्हारा पीछा कर रहा है।”

 

“लेक्चर का मज़ा तो तब है जब सुनने वाले भी समझें कि यह बकवास कर रहा है और बोलने वाला भी समझे कि मैं बकवास कर रहा हूँ।”

 

“इंडोलॉजी के शोधकर्ता को सबसे पहले इस विषय के शोधकर्ताओं का शोध करना पड़ता है।”

 

“बाबू रंगनाथ, तुम्हारे विचार बहुत ऊँचे हैं। पर कुल मिलाकर उनसे यही साबित होता है कि तुम गधे हो।”

 

” ‘प्यार’ शब्द कविता की साजिश से शब्दकोशों में स्थान पा सका है।”

 

“आकाश का कोई रंग नहीं होता – नीलापन उसका फ़रेब है।”

 

“अगर हम ख़ुश रहें तो ग़रीबी हमें दुःखी नहीं कर सकती और ग़रीबी को मिटाने की असली योजना यही है कि हम बराबर ख़ुश रहें।”

 

“अपने देश का क़ानून बहुत पक्का है, जैसा आदमी वैसी अदालत।”

 

“वे पैदायशी नेता थे, क्योंकि उनके बाप भी नेता थे।”

 

“हृदय परिवर्तन के लिए रौब की ज़रूरत होती है, और रौब के लिए अंग्रेज़ी की।”

 

“कहा तो घास खोद रहा हूँ, अंग्रेज़ी में इसे ही रिसर्च कहते हैं।”

 

“पढ़े-लिखे आदमी को जुतियाना हो, तो गोरक्षक जूते का प्रयोग करना चाहिए।”

 

“हमारे इतना पढ़ लेने के बाद भी पेशाब पेड़ के तने पर ही उतरता है, बन्द कमरे में ऊपर चढ़ जाता है।”

 

“पढ़ने से और ख़ास तौर पर दसवीं कक्षा में पढ़ने से उन्हें बहुत प्रेम था; इसलिए वे उसमें पिछले तीन साल से पढ़ रहे थे।”

 

“वर्तमान शिक्षा पद्धति रास्ते में पड़ी हुई कुतिया है, जिसे कोई भी लात मार सकता है।”

 

“जो ख़ुद कम खाता है, दूसरों को ज़्यादा खिलाता है; ख़ुद कम बोलता है, दूसरों को ज़्यादा बोलने देता है; वही ख़ुद कम बेवक़ूफ़ बनता है, दूसरे को ज़्यादा बेवक़ूफ़ बनाता है।”

 

“थाने के सामने एक नंग-धड़ंग लंगोटधारी भंग घोट रहा है। वह अकेला सिपाही बीस गाँवों की सुरक्षा के लिए तैनात है और जिस हालात में, जहाँ है, वहीं से वह बीस गाँवों के अपराध को रोक सकता है। अपराध हो गया हो तो पता लगा सकता है तथा अपराध न हुआ हो तो उसे करा सकता है।”

 

“पुनर्जन्म के सिद्धांत की ईजाद दीवानी की अदालतों में हुई है, ताकि वादी और प्रतिवादी इस अफ़सोस को लेकर न मरे कि उनका मुक़दमा पड़ा रहा। इसके सहारे वे चैन से मर सकते हैं कि मुक़दमे का फ़ैसला सुनने के लिए अभी अगला जन्म तो पड़ा ही है।”

 

“वे बताती थीं कि हमें एक अच्छा रेज़र-ब्लेड बनाने का नुस्ख़ा भले ही न मालूम हो, पर कूड़े को स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों में बदल देने की तरकीब सारी दुनिया में अकेले हमीं को आती है।”

 

“इस देश में जाति-प्रथा को ख़त्म करने की यही एक सीधी-सी तरकीब है। जाति से उसका नाम छीनकर उसे किसी आदमी का नाम बना देने से जाति के पास और कुछ नहीं रह जाता। वह अपने-आप ख़त्म हो जाती है।”

 

“तुमने मास्टर मोतीराम को देखा है कि नहीं? पुराने आदमी हैं। दरोगाजी उनकी, वे दरोगाजी की इज़्ज़त करते हैं। दोनों की इज़्ज़त प्रिंसिपल साहब करते हैं। कोई साला काम तो करता नहीं है, सब एक-दूसरे की इज़्ज़त करते हैं।”

 

यह भी पढ़ें: व्यंग्यकार मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी के उद्धरण

Link to buy Rag Darbari:

श्रीलाल शुक्ल
श्रीलाल शुक्ल (31 दिसम्बर 1925 - 28 अक्टूबर 2011) हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। वह समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात थे। स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत दर परत उघाड़ने वाले उपन्यास 'राग दरबारी' (1968) के लिये उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके इस उपन्यास पर एक दूरदर्शन-धारावाहिक का निर्माण भी हुआ। श्री शुक्ल को भारत सरकार ने 2008 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है।