सबसे पहले
शुरू होता है माँ का दिन
मुँह अंधेरे
और सबके बाद तक
चलता है

छोटी होती हैं
माँ की रातें नियम से
और दिन
नियम से लम्बे
रात में दूर तक धँसे हुए

इसे कोई भी
दिन की घुसपैठ नहीं मानता
माँ की रात में

पैर सिकोड़कर
रोज़ सोती है
गुड़ी-मुड़ी माँ
बची-खुची रात में

पैर फैलाने लायक़
लम्बी भी नहीं होती
माँ की रात!

ज्योत्स्ना मिलन की कविता 'औरत'

Book by Jyotsna Milan:

ज्योत्स्ना मिलन
ज्योत्स्ना मिलन (१९ जुलाई १९४१-५ मई २०१४) हिन्दी की कवयित्री एवं कथाकार थीं। वे स्त्रियों के संगठन 'सेवा' के मासिक मुखपत्र 'अनसूया' की सम्पादक भी थीं। उन्हें महिलाओं के उत्थान तथा उनसे जुड़े संवेदनशील मुददों को अपनी लेखनी के माध्यम से अभिव्यक्त करने में महारत हासिल थी।