‘Ram Ki Khoj’, a poem by Adarsh Bhushan
मुझे नहीं चाहिए वो राम
जो तुमने मुझे दिया है,
त्रेता के रावण का
कलियुग में
संज्ञा से विशेषण होना
और
एक नयी उपमा की निर्माण प्रक्रिया,
एक नए राम की खोज में है,
जलता रावण
आज भी भीड़ में
आँसू लिए
‘राम’ खोजता है,
खोजता है
उस राम का अस्तित्व
उस राम का अधिकार
जो उस पर विजय पा सके।
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