गिरिराज किशोर की कहानी ‘रेप’ | ‘Rape’, a story by Giriraj Kishore

कुर्सियाँ ख़ाली थीं। एक बैरा थाली में राखदानियाँ इकट्ठी किये मेज़ों पर रखता घूम रहा था। पोंछा लगने के कारण फ़र्श गीला था। पंखे पूरी रफ़्तार पर खुले थे। काउन्टर-मैनेजर कागज सँभालता हुआ आँखों को तेज़ी से इधर-उधर घुमा रहा था और कॉफी पी रहा था।

वे तीनों हॉल में घुसे। मि. खन्ना काफी ज़ोर से ही-ही करते हुए दाँत फाड़ रहे थे। चूंकि कुसियाँ ख़ाली थीं, उनकी हँसी कुर्सियों पर से गुज़र गयी। अलबत्ता मैनेजर ने कॉफी का प्याला उठाने और होंठों से लगाने के बीच उन तीनों को देखा। देवकुमार ने ज़ोर से पूछा, “कहिये मैनेजर साहब?”

उसने वाक्य पूरा होने से पहले सामने उठे हुए दाँत निकाल दिये। देवकुमार ने मुश्किल से तमाम हँसी रोकते हुए अपनी बात पूरी की, “इडली-विडली मिलेगी?”

मैनेजर ने आँख नचाते हुए गर्दन को झटके देकर मद्रासी लहजे में कहा, “अबी… पाँच… मिनट…।”

वे तीनों सामने दीवारघड़ी के नीचे जाकर बैठ गये।

मि. खन्ना का चेहरा मुस्कराता हुआ था। अधिक होंठ फैलाकर कहा, “यार श्रीवास्तव!” ‘साहब’ रुककर कहा। फिर बड़ी धीमेधीमे अपनी बात शुरू की, “एक बात तो बताओ। हर प्रदेश में दो-दो गुट बन गये हैं– मिनिस्टिरियलिस्ट और डिसिडेन्ट। इसे ख़त्म करने के लिए अपनी स्टेट ने प्रयोग करके देखा। राजनीति का सेक्स बदल दिया गया। लेने-के-देने पड़ गये।

मि. श्रीवास्तव बिना उन दोनों की ओर देखे हुए बोले, “एक और जीव बचा है उसे भी बनाकर देख लिया जाये।”

उन दोनों को हँसी आने को हुई लेकिन मि. श्रीवास्तव ने बिना किसी ओर ध्यान दिये कहा, “महाभारत-काल में तो उनको बाक़ायदा राजनीति में स्थान मिलता था।”

श्रीवास्तव साहब के चेहरे पर गहरी निराशा व्याप गयी। उन दोनों ने हँसना जारी कर दिया। मि. श्रीवास्तव ने इस तरह देखा- आप ही-ही कर रहे हैं यहाँ जान पर बनी है। उस नज़र के बाद भी उन दोनों के हँसने में कोई अन्तर नहीं आया। श्रीवास्तव साहब ने दूसरी ओर मुंह घुमा लिया और सिगरेट के तम्बाकू का बटुवा निकालकर दोनों हाथों से सिगरेट रोल करने लगे।

चन्द्रिका बाबू अन्दर घुसे। दरवाजे पर ठहरकर इधर-उधर नज़र डाली और उन्हीं लोगों की ओर बट गये। श्रीवास्तव साहब ने चन्द्रिका बाबू को अपनी बराबर में बैठते हुए देखकर भी सिगरेट की ओर से बिना ध्यान हटाये हुए कहा, “चन्द्रिका बाबू, आप एम. एल. ए. हैं, हम लोगों की समस्या का समाधान कीजिए।”

चन्द्रिका बाबू तनिक औचकपने से बोले, “अरे भई, आप बुद्धिजीवियों के बीच नहीं पड़ते। बाद में कहेंगे यह घुसपैठिया यहाँ भी आ मरा। जब हम कुछ कहा करते थे, पुलिस वाले नालाँ रहते थे। हमने बोलना बन्द कर दिया। अब देखिये भले घर की लड़कियों के साथ दिन-दहाड़े क्या हुआ है। पब्लिक जाने या पुलिस! हमें क्या लेनादेना।

श्रीवास्तव साहब ने धीरे से कहा, “फिर आप ज़रूर बोलते रहिये।”

कहकर दियासलाई की सींक से सिगरेट में तम्बाकू ठूसना जारी रखा। श्रीवास्तव के कहने के ढंग से चन्द्रिका बाबू थोड़ा शरमा गये, “नहीं मेरा मतलब यह नहीं था।”

मि. खन्ना और देवकुमार गंभीर हो गये। उन दोनों ने चन्द्रिका बाबू की ओर बड़ी सहानुभूति के साथ देखा। उनकी बात को आगे बढ़ाने की गरज़ से खन्ना साहब ने कहा, “कल चर्च के पास दो लड़कियाँ टहल रही थीं। एक लड़का साइकिल पर आया और एक लड़की का दुपट्टा लेकर येज्जा-वोज्जा।”

श्रीवास्तव ने सिगरेट जलाते हुए धीरे से कहा, “बस।”

खन्ना साहब कुछ कहने को हुए। चन्द्रिका बाबू ने पहले ही बोलना आरंभ कर दिया। खन्ना साहब ने नाराजी से उनकी ओर देखा और गर्दन घुमा ली। चन्द्रिका बाबू का कहना था, “यहाँ रहते थे कभी ऐसा नहीं हुआ। यही एक शहर था जहाँ लड़कियाँ बेधड़क घूमा करती थीं। मजाल थी नज़र उठाकर भी देख ले।”

मि. श्रीवास्तव इस बार चन्द्रिका बाबू की ओर देखकर बोले, “चन्द्रिका बाबू, आप लखनऊ रहने लगे। अब फिर यहीं आकर रहने लगिये।”

क्षण-भर को चन्द्रिका बाबू चक्कर काट गये लेकिन तुरन्त ही सँभलकर बोले, “हम लोग कुछ कहेंगे तो गृहमंत्री सदन में वक्तव्य दे देंगे—सब विरोधी दल की कारस्तानी है। आप बुद्धिजीवी ही कुछ आवाज़ उठायें तो बात बने।”

खन्ना साहब के चेहरे पर संवेदना के चिह्न थे। थोड़ी भरी आवाज़ में बोले,, “चन्द्रिका बाबू, आप सही कह रहे हैं, ज़रा कल्पना करके देखिये उन लड़कियों पर क्या बीती होगी? अपनी मर्ज़ी से यह सब हो तो बात दूसरी है, लेकिन।” थोड़ा मुस्कराकर बोले, “किसी छोटे-से टापू पर हज़ार मेगाटन का बम विस्फोट कर दिया जाये …चिथड़े-चिथड़े उड़ जायेंगे। एक पर तीन-तीन, चार-चार, क्या हालत हुई होगी।”

चन्द्रिका बाबू ने कानों पर हाथ रखकर दो-तीन बार, ‘राम-राम’ का सुमिरन किया।

श्रीवास्तव ने संजीदगी बरतते हुए कहा, “सही है! फ़र्क इतना ही है। बम-विस्फोट के बाद गर्मी पैदा होती है। यहाँ ठंडक!”

देवकुमार श्रीवास्तव साहब की तरफ देखकर मुस्कराये। चन्द्रिका बाबू ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, “आपने बहुत ठीक कहा, आप लोग आवाज़ उठायें। यहाँ के एस. पी. का तबादला फ़ौरन हो जाना चाहिये। बड़ा अन्याय है। बहू-बेटियाँ सबके हैं।” अन्तिम वाक्य कहते-कहते चन्द्रिका बाबू थोड़ा उत्तेजित हो गये।

श्रीवास्तव ने कहा,, “बुद्धिजीवियों के ज़्यादा।”

“जी हाँ, इसीलिए तो आपसे कह रहा था आप लोग आवाज उठायें। इस सरकार के कानों के पास ढोल न बजायें तो यह सरकार जागती ही नहीं।”

बैरा के आ जाने से चन्द्रिका बाबू की बात अधूरी रह गयी। बैरा बार-बार कह रहा था,, “हाँ साऽब?”

मि. खन्ना ने उन दोनों की तरफ़ देखा। श्रीवास्तव साहब गर्दन झुकाये बैठे थे। देवकुमार खन्ना साहब के चेहरे की ओर टुकुर-टुकुर देख रहे थे। खन्ना साहब ने बैरा से धीमी आवाज़ में कहा, “तीनों के लिए एक प्लेट इडली, दो औंस मक्खन। चन्द्रिका बाबू आप?”

“अरे साहब जो आप खायेंगे वही हम, आपसे अलग थोड़े ही हैं।” बैरा से बोले, “हमारा मक्खन अलग ही लाना।”

बैरा चला गया।

देवकुमार ने पूछा, “चन्द्रिका बाबू, आपको तो पूरा किस्सा मालूम होगा?”

“अरे साहब, उसमें क्या हाथी-घोड़े जुतते हैं। सच पूछिये तो सब पुलिसवालों की लापरवाही है। मज़ा हैं।”

श्रीवास्तव ने उसी मुद्रा में कहा, “इसीलिए तो दूसरों से मरवाते भी हैं।”

चन्द्रिका बाबू ने उनकी ओर देखा ही नहीं, अपनी बात जारी रखी, “ये लोग थोड़ा होशियार रहें तो भला पत्ता हिल सकता है। अरे साहब परिन्दा पर नहीं मार सकता। अब यहाँ किसी की बहू-बेटी सलामत नहीं।”

देवकुमार ने तनिक तेज़ आवाज़ में कहा, “चन्द्रिका बाबू, यह तो मैं भी जानता हूँ, उसमें हाथी-घोड़ों की ज़रूरत नहीं पड़ती। आदमी ही काफ़ी होता है। मैं तो यही पूछ रहा था कि हुआ कैसे?”

“कोई पूछने की बात है। होना क्या था, अगर आप लोग रोक-थाम नहीं करेंगे तो दूसरे मुल्कों की तरह यहाँ भी रोज़मर्रा हुआ करेगा। अरे जनाब, इस एस. पी. का तबादला करवाइये। आवाज बुलन्द कीजिये।”

श्रीवास्तव ने चन्द्रिका बाबू की ओर न देखकर देवकुमार से कहा, “एक-आध वक्तव्य दे दो। न हो तो चन्द्रिका बाबू से कहो, जहाँ से अपने लिए मँगवाते हैं, एक-आध तुम्हारे लिए भी मँगा देंगे।”

चन्द्रिका बाबू का चेहरा तमतमा आया। मि. खन्ना ने तुरन्त बात सँभालते हुए कहा, “कॉफ़ी हाउस रूल नम्बर दो! कोई भी कॉफ़ीहाउस का मेम्बर किसी की बात को गम्भीरतापूर्वक लेकर बुरा नहीं मानेगा। वरना एक हफ्ते के लिए हुक्का-पानी बन्द!”

चन्द्रिका बाबू मुस्करा दिये। उनका मुस्कराना गरम रबड़ खिचने की तरह लगा। बैरा इडली ले आया। चन्द्रिका बाबू का मक्खन भी देवकुमार की तरफ़ रखा जाने लगा तो उन्होंने तुरन्त कहा, “हमारा मक्खन इधर रखो, हाँ।”

श्रीवास्तव साहब ने चम्मच उठाकर उनके मक्खन में डाल दी। अपना मक्खन पहले ही मिला चुके थे। चन्द्रिका बाबू के चेहरे पर तनाव आ गया, लेकिन औपचारिकतावश कहा, “लीजिए और लीजिए, संकोच की क्या बात है।”

मि. श्रीवास्तव ने आधे से अधिक मक्खन एक बार में ही खींच लिया और मिलाते हुए बोले, “हाँ-हाँ, आप, बेफ़िक्र रहे, मैं ले लूँगा। आप नहीं लेंगे?”

चन्द्रिका बाबू ने सब लोगों की तरफ़ देखकर कहा, “देखिये साहब मेरा ही तो मक्खन है और मुझसे ही पूछ रहे हैं आप नहीं लेंगे।”

श्रीवास्तव ने इस बार नज़र उठायी, उनके कान के पास मुंह लाकर कहा, “यह सब एस. पी. का ट्रान्सफ़र न होने की वजह से है।”

चन्द्रिका बाबू ने बिना मक्खन लगाये इडली खाना शुरू कर दिया। “आप इसमें से लीजिये।”

चन्द्रिका बाबू ने जवाब नहीं दिया।

दो-चार सेकण्ड चारों लोग चुपचाप खाते रहे। हॉल में बैठे लोगों की आवाजें उभरने लगीं। देवकुमार ने फिर सवाल दोहरा दिया, “चन्द्रिका बाबू, आपने वाक़या नहीं बताया, दरअसल हुआ क्या?”

रवि, देवकुमार के पीछे आकर खड़ा हो गया था। बुलन्द आवाज में बोला, “अच्छा तो वही चर्चा यहाँ भी है।”

चन्द्रिका बाबू ने बाहर की तरफ़ झाँककर देखा और किसी को तलाशने की मुद्रा में उठकर बाहर चले गये। खन्ना साहब ने मायूसी से उन्हें जाते हुए देखा। बाक़ी सब एकाग्रचित इडली खाते रहे।

रवि ने पूछा, “गुरू क्या कह रहे थे? वही कह रहे होंगे एस. पी. का ट्रांसफ़र कराओ। पिछली हड़ताल में एस. पी. ने खूब ठुकाई करा दी थी। तब से यही एक राग है।”

श्रीवास्तव साहब ने एक आँख तिरछी करके रवि की ओर देखा।

देवकुमार ने वही बात रवि के सामने भी दोहरा दी, “यार तुम तो काफ़ी पहुँच के आदमी हो, तुम ही बताओ हुआ क्या?”

रवि के होंठों की नोकें गालों में घुस गई। मुदित भाव से बोला, “तुम अभी बच्चे हो क्या करोगे जानकर।”

देवकुमार का चेहरा खिंच-सा गया। रवि हँस दिया, “पूछते हो तो बताये देता हूँ। दो लड़कियाँ दो लड़कों के साथ फ़िल्म ‘आओ जी’ का शूटिंग कर रही थीं। विलियन ने एन्ट्री की। हीरो पिट गया। बस यही बात फ़िल्मी कोड ऑफ़ कन्डेक्ट के विरुद्ध हो गयी।”

श्रीवास्तव साहब ने बड़ी गंभीरता के साथ सब लोगों के हँसते हुए चेहरों की तरफ़ देखा, फिर बोले, “फ़िल्मी हीरोइनों की तो कोई बात नहीं, जो पार्ट मिलेगा करना पड़ेगा..” पर एकाएक नाराज़गी की हद तक गंभीर होकर कहा, “लेकिन उन लड़कियों को भी हीरोइनें समझा गया, यह सरासर ज्यादती है।”

रवि ने समझा बात गंभीर है। उसने दूनी गंभीरता के साथ हाँ में हाँ मिलायी, “जी हाँ, उन लोगों पर क्या बीती होगी।” फिर गर्दन नीची करके गोपनीय ढंग से बताया, “एक मेडिकल अफ़सर यह बता रहे थे जब लायी गयीं बदहवासी की हालत में थीं…” अपने हाथों को सीने पर रखकर इशारा करते हुए बोला, “छातियाँ नीली काँच हो गई थीं!”

मि. खन्ना ने गर्दन हिलाते हुए कहा, “वहाँ होता ही क्या है! खून जम गया होगा।” अपने हाथ की उँगलियाँ हथेली से मसलते रहे।

रवि ने अपनी बात जारी रखी, “उनमें से एक चूड़ीदार पाजामा पहने थी। फाड़ डाला गया। चिथड़े-चिथड़े उड़ गये। जब उन दोनों लड़कियों से पूछताछ की जा रही थी, एक तो बिलकुल कोल्ड बनी बैठी थी। जैसा सवाल पूछा जाता था बिना किसी शर्म-लिहाज़ के वैसा ही जवाब दे देती थी। उसे पूछा गया कैसे-कैसे हुआ, उसने सब बता दिया- ऐसे-ऐसे! खड़े हुए आदमियों की गर्दन नीची हो गयीं। दूसरी रोती जा रही थी। वह बड़ी मुश्किल से हूँ-हाँ करती थी।”

आवाज़ में और अधिक गोपनीयता बढ़ाकर कहा, “जाँघे तक भंभोड़ डालीं। वे दोनों हीरो सामने बंधे देखते रहे बेचारे!”

क्षण-भर को सबका चेहरा दूसरा गया। खन्ना साहब का ऊबड़खाबड़ चेहरा इकसार होता गया। देवकुमार की आँखों में और चेहरे पर संवेदना उभर आयी।

देवकुमार ने ही कहा, “उस वक्त वहाँ जाने को किसने कहा था!”

मि. खन्ना तुरन्त अलिफ़ हो गये, “अपने हिन्दुस्तानीपन पर आ गये न। उन हरामज़ादों को कुछ नहीं कहा गया! तुम तो उन्हीं लोगों की तरफ़ हो—मौज-मज़े से मतलब!”

रवि का दिमाग चालू था, “ज़िन्दगी-भर के लिए फ्रिजिड हो जायेंगी। और साहब आज-कल के ज़माने में आप कहें उस समय लड़कियों को जाना चाहिये और इस समय नहीं। यह कहीं हो सकता है।” हंसकर बोला, “अजी साहब अभी तो एसेम्बली में बूढ़े-बूढ़े सदस्य ‘रेप’ का मज़ा लेंगे और निचोड़ पेश करेंगे। सरकार पर भी ज़ोर आज़मायश का मौका मिलेगा।”

देवकुमार ने भी सहारा दिया, “यह बात बुरी होगी। लड़कियों की कुलियाँ उजाली जायेंगी। एक-दो एम. एल. ए. बाहर फेंके जायेंगे। विरोधी दल अबलाओं की रक्षा करने का पूरा-पूरा नाटक करेगा। और सरकार से माँग करेगा मौक़ा-मुआयना की सुविधा दी जाये।”

मि. खन्ना ने तुरन्त सवाल किया, “तो आप लड़कियों की तरफ़ हैं।”

देवकुमार क्षण-भर को सकपका गया। बात को टालते हुए बोला, “आप बताइये, आप किसकी तरफ़ हैं?”

“ऐसेम्बली वालों से लेकर जनता तक सबकी तरफ़! इन लड़कियों ने सरकार, अफ़सर, विरोधी दल और जनता सबको अपनी-अपनी बात कहने का मौका तो दिया। इस बहाने पुलिस वालों को भी पता चलेगा, सरकार का रुख अभी उनकी ओर से बदला नहीं।”

बैरा आकर कॉफ़ी का आर्डर ले गया। बात का सिलसिला बीच ही में टूट गया। श्रीवास्तव साहब ने बहुत धीमे से बात शुरू की, “मैं सोचता हूँ लड़कियों को रिवाल्वर दे दिये जाएँ।”

रवि ने बड़ी ज़ोर से हाँ मिलायी, “रिवाल्वर चलाना मुश्किल थोड़े ही है।”

मि. खन्ना ने हँसकर कहा, “शादी के बाद पतियों की रूह भी कब्ज़ रहेगी। हर वक़्त कॉफ़ी हाउस में बैठे रहते हैं। क्यों श्रीवास्तव साहब?”

“जी नहीं, उधर डोला उठा इधर रिवाल्वर मालखाने में जमा। शादी से पहले उसकी ज़रूरत होती है।”

जोर का क़हक़हा लगा। इस बार मि. श्रीवास्तव के होंठ फैल गये। हॉल में बैठे लोग उन्हीं की तरफ़ देखने लगे। मैनेजर के उठे हुए दाँतों पर आकर होंठ कट गये। उसने हॉल के चारों तरफ़ देखा और काउंटर से हटकर उनके पास आ खड़ा हुआ।! श्रीवास्तव साहब ने मैनेजर की तरफ़ देखकर धीमे से कहा, “शहर में एक इन्टेलेकच्युअल घटना घट गयी है। उसी पर इन्टेलेकच्युअल डिसकशन हो रहा है।”

मि. खन्ना ही-ही करके हँसने लगे।

मैनेजर साहब के चेहरे पर सख़्ती की मात्रा थोड़ी बढ़ गयी। श्रीवास्तव साहब ने कहा, “शायद आप इन लोगों के ज़ोर-ज़ोर से हंसने पर नाराज हैं। आप जानते नहीं ऐसी घटना चाहे चुपचाप घट जाए पर उसकी बातचीत बिना शोर के नहीं होती।” श्रीवास्तव ने दांतों को हल्का खोलकर मैनेजर को चले जाने का इशारा कर दिया।

इस तरह काट दिया जाना मैनेजर को काफ़ी बुरा लगा।

श्रीवास्तव ने उसी अन्दाज़ में कहा, “ऐसे मौके पर जब लोग इन्टेलेकच्युअल घटनाओं और चर्चाओं का महत्त्व न समझते हों तो…” आँख दबाकर धीमे से बोले, “नौ-दो-ग्यारह हो जाना चाहिये।”

सब लोगों ने कुर्सियाँ खिसकायीं और उठ गये। मि. खन्ना रुक गये।

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Book by Giriraj Kishore: