रहना तुम चाहे जहाँ, ख़बरों में आते रहना
हम को एहसास-ए-जुदाई से बचाते रहना
ख़ुद-गज़ीदा हूँ, बड़ा ज़हर है मेरे अंदर
इसका तिरयाक़ है रातों को जगाते रहना
मुद्दतों बाद जो देखोगे तो डर जाओगे
अपने को आइना हर रोज़ दिखाते रहना
ख़ुद-फ़रेबी से हसीं-तर नहीं कोई जज़्बा
ख़ुद जो रहना है तो ये धोखा भी खाते रहना
ये तो मालूम है मरने पे मिलेगी उजरत
कार-ए-फ़नकार है तस्वीर बनाते रहना
अपनी ना-अहली पे क़ातिल को न तैश आ जाए
ओछे ज़ख़्मों को ज़रा उससे छुपाते रहना
हारने जीतने से कुछ नहीं होता ‘वामिक़’
खेल हर साँस पे है दाँव लगाते रहना!
वामिक़ जौनपुरी की नज़्म 'भूखा बंगाल'