अब तुम्हें गए हुए कितने साल बीत गए
वो चिड़िया जो मेरे घर के पीछे वाले पेड़ से
हम दोनों को निहारती थी
आज वो नहीं आई
शायद, चली गई

तुम्हारे जाने के बाद
जब भी उसको चहचहाता देखता था
लगता था, उसकी नज़र लग गई हमें
उठ के खिड़की बंद कर देता था

ऐसा रोज़ का सिलसिला बन चुका था
उसका आना, मेरा खिड़की बन्द कर देना

आज खिड़की बन्द नहीं की
शायद, कल भी खुली हुई ही थी

याद ही नहीं वो कब गई होगी
मेरी आदत से ऊब कर के कोई और डाल ढूंढ ली होगी

ना ना, मुझसे लोग ऊबते कहाँ हैं
ये तो मेरे उसके रिश्ते की उम्र ही इतनी थी..

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