प्रेम जताने से अधिक
प्रेम निभाना ज़रूरी होता है
इतनी साधारण बात है

पर वे
कभी तुम्हारी मूँछों पर तो कभी चाल पर
तो कभी तुम्हारे रुआब पर मर मिटीं
तुमसे प्रेम करने के बाद
दुआओं में
तुम्हारे अलावा फिर कुछ न माँगा

तुम सूरज के सातवें घोड़े पर सवार होकर आए
और उनका मन रौंदते हुए सरपट चलते बने

उन्होनें तुम्हारे मन के भरोसे ही तो
देह की नदी में सपने उतारे थे
सपनों को तुम्हारा हाथ पकड़कर पार होना था

पर देखो श्राप भी तो उसी नदी के मत्थे
लगना था
जिस नदी में न जाने कितने मन सदियों से डूबते आए
अब एक और मन सही

जिन उम्रों में उन्हें किताबों के प्रेम में डूबना था
उन उम्रों में वे
तुम्हारे प्रेम की आग में देह जला बैठीं

उनका बिखरा मन अतीत के आहिस्ता रास्तों पर चलते हुए लोक कथाओं के नायकों को तलाशता रहा

रूप कथाओं के चमकते नायक
असल नायकों को पीछे धकेलते रहे

अवचेतन मन के आकाश में
छिपे किसी तारे की तरह
वे भागती रहीं स्वप्नलोक के नायकों के पीछे

तुम तो स्वनियोजित आखेट पर निकले थे
और वे शिकार होने
तुम्हारे वादों और मीठी बातों के जाल में

तुम उन्हें ध्वस्त करने निकले थे
कि तुम्हारी ही सत्ता थी
पर तुम भूल गए कि
तुम उनकी पुरखिनों की कोख से ही
निकले सूरमा हो

तुम्हें बनाने का शऊर पीढ़ियों से अभ्यास में है
तो वे चेहरा बिगाड़ने का साहस भी जल्द सीख जाएँगी

धीरे-धीरे नदी के माथे लगे श्राप की अवधि
अब समाप्ति की ओर है!

शालिनी सिंह की कविता 'प्रेम की डाक'

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