“वो अल्मुनियम का कटोरा कितने का दिया?”, उस आदमी ने पटरी दुकानदार से पूछा। उसने अपने मुहं पर रुमाल भी बांधा था, देखने में वो अजीब था।
“चालीस रूपये का।”
“भैया कुछ कम कर दो, तीस रूपये में दे दो, 10 खरीद लूंगा।”
“नहीं पड़ता है भाई, बोहनी का टाइम है, पड़ता तो दे देता।”
“देख लो पैंतीस में दे दो, बोहनी अच्छी हो जाएगी आपकी।”
“ठीक है लाओ दो। लेकिन एक बात बताओ- इस कालोनी में नए आये हो क्या? पहले कभी नहीं देखा?”
“हाँ” , इतना कहकर उस व्यक्ति ने पैसे दिए और मुस्कुराते हुए उस दुकानदार की ओर देखा और फिर चला गया। वो दुकानदार उस व्यक्ति से और भी बहुत कुछ पूछना चाहता था किन्तु उसने पूछा नहीं।
उसी दिन शाम को-
“अरे रतन लाल सात बजने वाले हैं, भूल गए क्या आज शनिवार है? मंदिर चलना है कि नहीं।” यह आवाज थी रतन के दोस्त बनवारी की।”
“यार बनवारी आज बड़ा अच्छा काम रहा, सुबह की बोहनी बड़ी शानदार रही। बस 15 मिनट दो, दुकान बढ़ाता हूँ, फिर चलता हूँ।”
थोड़ी देर बाद दोनों दोस्त मंदिर में शनि देव के दर्शन की लाइन में लगे हैं कि तभी पीछे से दस बारह साल की उम्र के तीन बच्चे उनकी शर्ट पकड़ बोलते हैं- “बाबू कुछ दो ना, भगवान भला करेगा।” सभी बच्चों के हाथों में अल्मूनियम के कटोरे थे।
“अरे ये तो मेरी ही दुकान के बर्तन हैं जो मैंने उस व्यक्ति को बेचे थे, इनके पास कहाँ से आ गए।” रतन के आश्चर्य की इस समय सीमा नहीं थी।
बनवारी भी बोल उठा- “क्या?”
फिर अचानक एक बच्चा बोल उठा- “बाबू क्या सोचते हो कुछ दो न?”
“दे दूंगा पहले ये बता ये कटोरा तेरे पास कहां से आया?”
“नहीं!! मालिक मारेगा।”
“पचास रूपये दूंगा! अब बोल!”
“रतन क्या कर रहे हो! पागल हो गए हो क्या?” बनवारी बोल उठा।
रतन ने पचास रूपये उस बच्चे को दे दिए।
“साहब ये कटोरा हमको हमारे मालिक ने दिया है, हम जैसे 40-50 बच्चे और हैं जो शहर के अलग-अलग मंदिरों में जाते हैं, जो भीख मिलता है उसका आधा उसे दे देता है।”
“वो रहता कहाँ है? तुम्हारा मालिक!”
“ये नहीं पता साहब!” इतना कहकर वो बच्चा तेजी से भाग जाता है।
“अरे बच्चे सुनों तो जरा..” रतन कहता है। अचानक आस पास के और भीख मांगने वाले बच्चे भी भाग जाते हैं। रतन दर्शन वाली लाइन से बाहर निकल कर एक बेंच पर बैठ जाता है और कुछ सोचने लगता है।
“क्या सोच रहे हो रतन?”, बनवारी ने पूछा।
“यार आज मेरी जिंदगी की सबसे ख़राब बोहनी हुई है। हजारों कमाए पर मन पर बड़ा बोझ लग रहा है। वो आदमी मिल जाता तो पुलिस में पकड़वा देता, कुछ शांति तो मिलती।”
“अगर पुलिस भी उस भिखारी गैंग का हिस्सा हुई हो तो।”
“क्या कह रहे हो बनवारी?”
“सच कह रहा हूँ। यकीन न हो तो कल सुन्दर नगर थाने आ जाना, जहां मेरी दुकान है, इन बच्चों में अधिकतर वहां दिख जायेंगें।”
“क्या तुम्हें सब मालूम है?”
“हाँ! कई बार मैंने भी इन्हें सामान बेचा है और बहुत बार बोहनी भी की है। मेरी बोहनी भी खराब है इसका मतलब।”
“बनवारी, भीख के रुपयों से बोहनी??!!”
“हाँ, रतन!”
दोनों बिना दर्शन किये मंदिर से घर लौट आते हैं।