कहीं न पहुँचने की निरर्थकता में
हम हमेशा स्वयं को चलते हुए पाते हैं
जानते हुए कि चलना एक भ्रम है
और कहीं न पहुँचना यथार्थ

दिशाओं के ज्ञान से अनभिज्ञ
कर रहे हैं पीछा, सूरज उगने वाली दिशा का
प्रकाश से हमारा सम्बन्ध भले ही सदियों पुराना हो
पर अपनी ही परछाई से हार जाना नियति

हम हाँक दी गईं बकरियों की तरह झुण्ड में
चर रहे समय पर गिरी पत्तियों को
यह जानते हुए कि हवा उड़ा ले जाएगी
किसी रोज़ अनिश्चित दिशा में, जहाँ
हम ख़ुद को पाएँगे निरीह अकेला

जिनके हिस्से नहीं आतीं कोई निश्चित जगहें
वे यूँ ही भटकती रहती हैं तमाम उम्र
और एक रोज़ अंतिम आँसू की तरह गिरकर
मिट्टी हो जाती हैं
हम ढूँढते रहते हैं आदिम रास्ते
और चाही गई मंज़िलों के पते,
बारिश में भीगने की चाह और
जंगल के उस पार ख़ुद में डूबी एक नदी

टेढ़े-मेढ़े रास्तों को पार करने की इच्छा
किसी बच्चे की ज़िद जैसी
जो रोता है लगातार चाही गई वस्तु के लिए

हमें जीवन की तलाश में भटकने दिया जाए
निश्चित है कि कोई न कोई द्वीप
एक दिन हमसे ज़रूर टकराएगा
और तुम्हारा आसमान भरभराकर ढह जाएगा
हमारे खुले बालों पर
हम सफ़ेद फूल टाँक आसमान को सहेज लेंगी
जैसे सहेजती हैं जूड़ों में अपने बिखरे बाल।

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