‘Samay’, a poem by Rag Ranjan

क़दमों के उठने से बहुत पहले
शुरू हो चुका होता है सफ़र

जिन्हें हम निर्णय मानते हैं
अक्सर वे लिए जा चुके होते हैं
हमारे आभास से बहुत पहले कभी

चीज़ें जो सभी प्रत्यक्ष हैं
किसी पर्दे के पीछे से छनकर आयी हैं

अचानक कुछ भी नहीं होता
न हम
नहीं कुछ पाना, न खोना हमारा
नहीं यहाँ, न इस तरह होना हमारा

हम
कि जो सिर्फ़ समय की परछाईं हैं
समय, कि जो अभी यहीं था!

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