लगभग मान ही चुका था मैं
मृत्यु के अंतिम तर्क को
कि तुम आए
और कुछ इस तरह रखा
फैलाकर
जीवन के जादू का
भोला-सा इन्द्रजाल
कि लगा यह प्रस्ताव
ज़रूर सफल होगा।

ग़लतियाँ ही ग़लतियाँ थी उसमें
हिसाब-किताब की,
फिर भी लगा
गलियाँ ही गलियाँ हैं उसमें
अनेक सम्भावनाओं की।

बस, हाथ भर की दूरी पर है,
वह जिसे पाना है।
ग़लती उसी दूरी को समझने में थी।

कुँवर नारायण की कविता 'कविता की ज़रूरत'

Book by Kunwar Narayan:

कुँवर नारायण
कुँवर नारायण का जन्म १९ सितंबर १९२७ को हुआ। नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर कुँवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक (१९५९) के प्रमुख कवियों में रहे हैं। कुँवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के जरिये वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है।