‘Samvaad’, a poem by Rahul Mishra

दायरों ने आज़ादी से कुछ कहा
अंधेरों ने उजालों से कुछ कहा
मौन मुखर से बोले
शून्य शिखर से बोले
शान्ति ने क्रान्ति को समझाया
भ्रान्ति ने हक़ीक़त को उलझाया!

गरज ये
कि विलोम सम्वाद करते रहे
और पर्यायवाची प्रतिवाद में फँसे रह गए!!

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