‘Saraaye’, a poem by Amandeep Gujral

औरतों ने ख़ुद को सराय बना रखा है
कोई दिन को लौटता है
कोई शाम को
और कोई रात को
अपनी-अपनी मजबूरियों की पोटली लिए
हर कोई ढूँढता है जगह
सोने की, नहाने की या फिर
मैला धोने की
फिर चला जाता है दिन, शाम और रात को लौटने के लिए
औरतों ने कई दिन शामें और रातें तन्हा गुज़ारी हैं
सराय बनकर।

यह भी पढ़ें:

अपर्णा तिवारी की कविता ‘औरतें’
वंदना कपिल की कविता ‘वो औरतें’
सुशीला टाकभौरे की कविता ‘आज की खुद्दार औरत’
असना बद्र की नज़्म ‘वो कैसी औरतें थीं’

Recommended Book:

Previous articleअनन्त सम्भावनाओं का अन्तिम सच
Next articleप्रेम-डगरिया (भोजपुरी लप्रेक)

1 COMMENT

  1. […] अमनदीप गुजराल की कविता ‘सराय’ मृदला गर्ग की कहानी ‘हरी बिंदी’ सारिका पारीक की कविता ‘अधेड़ उम्र का प्रेम’ निर्मला सिंह की कविता ‘मैं मार दी जाऊँगी’ […]

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here