‘Seekh’, a poem by Balraj Sahni

वैज्ञानिकों का कथन है कि
डरे हुए मनुष्य के शरीर से
एक प्रकार की बास निकलती है
जिसे कुत्ता झट सूँघ लेता है
और काटने दौड़ता है।

और अगर आदमी न डरे
तो कुत्ता मुँह खोल
मुस्कुराता, पूँछ हिलाता
मित्र ही नहीं, मनुष्य का
ग़ुलाम भी बन जाता है।

तो प्यारे!
अगर जीने की चाह है,
जीवन को बदलने की चाह है
तो इस तत्व से लाभ उठाएँ,
इस मंत्र की महिमा गाएँ,
इस तत्व को मानवी स्तर पर ले जाएँ!
जब भी मनुष्य से भेंट हो
भले ही वह कितना ही महान क्यों न हो,
कितना प्रबल
कितना ही शक्तिमान हाकिम क्यों न हो,
उतने ही निडर हो जाइए
जितना कि कुत्ते से।

मित्र प्यारे!
अगर डरोगे, तो निकलेगी बास जिस्म से
जिसे वह कुत्ते से भी जल्दी सूँघ लेगा
और कुत्ते से भी
बढ़कर काटेगा!

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Book about Balraj Sahni:

बलराज साहनी
बलराज साहनी (जन्म: 1 मई, 1913 निधन: 13 अप्रैल, 1973), बचपन का नाम "युधिष्ठिर साहनी" था। हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता थे। वे ख्यात लेखक भीष्म साहनी के बड़े भाई व चरित्र अभिनेता परीक्षत साहनी के पिता हैं। एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म और मंच अभिनेता थे, जो धरती के लाल (1946), दो बीघा ज़मीन (1953), काबूलीवाला (1961) और गरम हवा के लिए जाने जाते हैं। बलराज साहनी एक अभिनेता के रूप में ही ज्यादा जाने जाते हैं, जबकि उन्होंने एक साहित्यकार के रूप में भी काफी कार्य किया है। उन्होंने कविताओं और कहानियों से लेकर, नाटक और यात्रा-वृत्तान्त तक लिखे हैं। 13 अप्रैल 1973 को जब उनकी मृत्यु हुई, तब भी बलराज एक उपन्यास लिख रहे थे, जो कि उनकी मृत्यु के कारण अधूरा ही रह गया।