इसी सदी में
एक दिन ऐसा
भी आएगा जब
सारे शब्द मर जाएँगे
जीवित हो जायेंगी सारी
भावनाएं…
आजकल तो काम चलाना पड़ता है
शब्दों से ही भावनाओं को जताने के लिये
हम लिख देते हैं….
फिर वो शब्द खो जाते हैं किताबों की जिल्दों
में बंद होकर पीले पन्नों में फैल कर बिखर जाते हैं
वो शब्द मेमोरी में फिट नहीं बैठते ठीक से और
न ही दिल की धमनियों में उतरकर दिल तक पहुंचते हैं
शब्दों में लिखी बात से वो गुदगुदी नहीं होती जो
महसूस करने से होती है…
खत लिखकर अपनी बात कहना
और सामने बैठकर आँखों में आँखें डालकर
और स्पर्श करके बात कहने में अंतर है…