“सड़क उठी और उठी और फ्लाईओवर हो गई!”
“वाह! जब तुम्हें कविता ही करनी थी तो इंजीनियरिंग क्यों की?”
“मालूम नहीं, नहीं बता सकता!”
“हाँ जानती हूँ, पुल गिरा दोगे।”
“मेरे भीतर से उठता हुआ पुल सरिया, सीमेंट, बालू से नहीं बना शब्दों से बना है, कभी नहीं गिरेगा।”
“और ये जाता कहाँ है?”
“तुम तक।”