शम्स धीरे धीरे जलाता है
सुबह को
शाम तलक
और राख कर देता है…
और उड़ाता है
उसकी राख आसमान में
और रात हो जाती है
राख से निकलते सफेद धुएं से
चाँद बन जाता है
हर रोज़…
लेकिन कभी कभी कोई
राख पे पानी डाल जाता है
और चाँद नहीं निकलता
सियाह रात होती है तब
कभी कभी..
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लम्बी कविता: डरावना स्वप्न
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परवीन साकेत की कविताएँ
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