सदियों से
बोलते आदमी को
चुप कराने की साज़िश है शान्ति।
हर निर्माण
हिंसा से जुड़ा है
चाहे वह बाड़ हो सुरक्षा की
या प्रतिरक्षा के लिए
तनी बन्दूक़।

अगला क़दम
जब भी उठेगा
अन्त में वह धरती को कुचलेगा
और आगे और आगे
कुचलता हुआ ही बढ़ेगा
चाहे नेपोलियन हो या हिटलर या कोई और!

सदियों से
संधियों और वार्ताओं में
शान्ति के निमित्त बीतता है वक़्त
और अशान्ति
हिंसा के बहाने जगह बदलती रहती है।

हुसेन रवि गांधी की कविता 'शान्ति'

Book by Ganga Prasad Vimal: