‘Shok Geet’, a poem by Archana Verma

फूलों में फूटकर
गाती है लता
पतझड़ का शोक-गीत
और तुम कहते हो
वसंत है

फूटने के बाद बस
फूल ही दिखता है
या थरथराती हुई टहनी पर
थिरकती हुई कोंपल,
ऐठंते हुए रेशों को छेदकर
भेदकर सुन्न हुई शिराओं को
ठिठककर रह गयी थी जो चीख़ अनसुनी
छाल की सतह के ठीक नीचे
फूटने के पहले ही
गीत बन जाती है
और तुम कहते हो
वसंत है

तुम्हारी दुनिया में
मौसम से डरती हैं चीज़ें
अक्सर बदल लेती हैं
नाम,
रोना और गाना तो
पहले भी
बहुत अलग नहीं थे यहाँ,
अब तुम क्या जानो
उस आग का अंज़ाम
जो पहले पानी में पिघलती है
फिर खिलती है
और तुम देखकर भी
पहचान नहीं पाते
यहाँ आग है
फूल को देखकर
बस पानी तक जाते हो
वहीं ठिठक जाते हो
मंत्र की तरह जपते हुए –
आग आग आग

उस दिन क्या करोगे तुम
जल्दी ही जो आने को है
तुम्हारी दुनिया में?
जब मौसम के डर से
चीज़ों की शक्ल भी बदल जायेगी
तब भी क्या पानी पर
ठिठके रह जाओगे? या फ़िर
यह गुत्थी तुमको सुलझाएगी?
तुम भी तब
फूलों के फूटने का ज़िक्र करके
सुनाओगे आग की दास्तान
और लता की कथा को दोहराओगे

तब तक लता अकेली है।

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अर्चना वर्मा
जन्म : 6 अप्रैल 1946, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) भाषा : हिंदी विधाएँ : कविता, कहानी, आलोचना मुख्य कृतियाँ कविता संग्रह : कुछ दूर तक, लौटा है विजेता कहानी संग्रह : स्थगित, राजपाट तथा अन्य कहानियाँ आलोचना : निराला के सृजन सीमांत : विहग और मीन, अस्मिता विमर्श का स्त्री-स्वर संपादन : ‘हंस’ में 1986 से लेकर 2008 तक संपादन सहयोग, ‘कथादेश’ के साथ संपादन सहयोग 2008 से, औरत : उत्तरकथा, अतीत होती सदी और स्त्री का भविष्य, देहरि भई बिदेस संपर्क जे. 901, हाई बर्ड, निहो स्कॉटिश गार्डन, अहिंसा खंड-2, इंदिरापुरम, गाजियाबाद