1
बालकनी में टँगी अरगनी
पर स्त्री रोज़ फैलाकर
रखती है अपनी तकलीफ़ें,
और साँझ होते-होते खींच
लाती है उन्हें भीतर…
2
भगोने से बाहर निकलती
चाय को फूँक मारकर
स्त्री रोज़ स्वयं को विश्वास
दिलाती है कि सब कुछ
कंट्रोल में है।
3
बचपन में चूहे से डरती लड़कियाँ
फिर एक दिन अचानक गला
साफ़ करने की आवाज़ से ही
काँप जाया करती हैं।
4
सपने देखने वाली लड़कियों को
सताया या मारा नहीं जाता,
बस उनको जीवन भर चुकाना
पड़ता है आँखों में सपने देखने
का किराया।
5
ईश्वर मचल गया स्वयं की
महानता पर और प्रसन्न
होकर उसने बना दी स्त्री
खिन्न मन से ईश्वर ने रचा
पुरुष और स्त्री को सौंप दी
जीवनभर की उदासीनता।
6
सम्भालना था
सम्पूर्ण सृष्टि को
एक धागे के रूप में…
ईश्वर ने गढ़ी स्त्री
और यात्रा पर निकल गया।