बचपन में दुपहरी थी
एक पेड़ था
एक चिड़िया थी
एक तालाब था
तीनों गाँव में थे
चिड़िया गाती थी
चिड़िया पेड़ में थी
पेड़ था तालाब में
तालाब दुपहरी में था
दुपहरी बचपन में थी
घर से तालाब का रास्ता भी
बचपन में था
धूप में चाँदी-सी चमकतीं
चिंगरा मछिलयाँ थीं
केकड़े थे
एक बड़ा पत्थर था
पत्थर थोड़ा पानी में था
दुपहरी में पत्थर था
मछली, केकड़े,
पत्थर, तालाब
बचपन में थे
बचपन पत्थर पर था
पानी में पाँव डाले
पेड़ की चिड़िया को
सुनता हुआ
पेड़ तो हरा था
हरे पेड़, चिड़िया, तालाब
मछली, केकड़े
गरमी की साँय-साँय दुपहरी
गाँव में थे
बचपन गाँव में था
फिर बस वहीं रह गया…
बरगद देखता है
बरगद देखता है एकटक
बादलों को
झूलती जटाएँ हटाकर
पत्तों की हज़ार-हज़ार आँखों से,
पूरा आकाश देखता है
अपलक अहर्निश
पूरी-पूरी पृथ्वी को
अकुलाकर
अपने प्राणों में
चिड़िया देखती है
घोंसले में चीख़ती भूख को
घास का हरा तिनका
यकायक
सुध-बुध खोकर
देखता है
पूरी देह से
हवा को
मैंने तुमको देखा
ऐसे देखा,
ऐसे देखा…
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