स्नेह मेरे पास है, लो स्नेह मुझसे लो!

चल अन्धेरे में न जीवन दीप ठुकराओ
साँस के संचित फलों को यों न बिखराओ
पत्थरों से बन्धु अपना सिर न टकराओ
मेघमेला विश्व है, लो राग मुझसे लो!

यह मरुस्थल है, कहाँ जल है पथिक प्यासे
दृष्टि-भ्रम है, मौन मृगजल है, थके तासे
शक्ति खो मत दो भटककर व्यर्थ आशा से
भूमि में जल है, उठो, लो शक्ति मुझसे लो!

तुम तिमिर-रंजित नयन से देख क्या पाए
बन्धु भी यमदूत बनकर आँख में आए
कहो, कब तक रहोगे, उद्भ्रान्त, अलगाए
प्राण का अवलम्ब लो, विश्वास मुझ से लो!

स्नेह मेरे पास है, लो स्नेह मुझसे लो!

Book by Trilochan:

त्रिलोचन
कवि त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य दो सतंभ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे।