मधुर सुरा संग संगम नीर,
अधर छुवत होवे मन वीरI
सुखद समाहित नयन फ़कीर,
प्रभा बिखेरत चन्द्र समीरI

चिरायु होत सृजन क्रिपान्कर,
नभ आलोकिक सुन्दर धराधरI
मन भ्रमित, उल्लास के बादल,
गिरत परत छ्लकत लव पावतI

सोम रस कि विकृत पुरानी,
कहे मणि जो बन गए ज्ञानी
सुर-सरा सोमरस यह पानी,
महगी पड़ेगी ये जिंदगानीI

दिनांक : 07 मई 2019

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