स्थगित नहीं होगा शब्द—
घुप्प अंधेरे में
चकाचौंध में
बेतहाशा बारिश में
चलता रहेगा
प्रेम की तरह,
प्राचीन मन्दिर में
सदियों पहले की व्याप्त प्रार्थना की तरह—

स्थगित नहीं होगा शब्द—
मौन की ओट हो जाएगा शब्द
नीरव प्रतीक्षा करेगा शब्द
धीरज में धँसा रहेगा शब्द।

उसके देह की द्युति-सा
उसके चेहरे की आभा-सा
उसके नेत्रों के चकित आश्चर्य-सा
अन्तरिक्ष में
सुगबुगाता रहेगा शब्द
स्थगित नहीं होगा।

अशोक वाजपेयी की कविता 'कितने दिन और बचे हैं?'

Book by Ashok Vajpeyi:

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अशोक वाजपेयी
अशोक वाजपेयी समकालीन हिंदी साहित्य के एक प्रमुख साहित्यकार हैं। सामाजिक जीवन में व्यावसायिक तौर पर वाजपेयी जी भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक पूर्वाधिकारी है, परंतु वह एक कवि के रूप में ज़्यादा जाने जाते हैं। उनकी विभिन्न कविताओं के लिए सन् १९९४ में उन्हें भारत सरकार द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया। वाजपेयी महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के उपकुलपति भी रह चुके हैं। इन्होंने भोपाल में भारत भवन की स्थापना में भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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