‘Stree Ki Duniya’, a poem by Manjula Bist

स्त्री की दुनिया बहुत संकीर्ण है
उसे सम्भावनाओं में ही जीवन का विस्तार दिखता है।

वे युद्ध-काल में गीतों को आँचल से बाँधने में कुशल हैं
जिससे आने वाली नस्लें
बचा सकें कुछ गिने-चुने स्वर
और ऋतुओं को बता सकें कि
रक्तिमकता सदैव संहार नहीं होता!
शिशु-जन्म में रक्त करुणामयी हो
फ़सलों को बिखरने का अर्थ बताता है।

उसे नदी होने से पहले बाँध का साहचर्य स्वीकार है
ताकि किनारे पड़े पत्थरों को यह भान होता रहे
कि उनके किसी घाट पर पूजे जाने से पहले
उनका तराशा जाना कितना ज़रूरी है।

स्त्री, आज भी
बहुत ज़्यादा नये अर्थ नहीं तलाशती है
वह सम्भावनाओं में संधि-सी समाहित होकर
धरती के हर टुकड़े के साथ
स्त्रीत्व की अविरल धारा को ज़िंदा रखती है।

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मंजुला बिष्ट
बीए. बीएड. गृहणी, स्वतंत्र-लेखन कविता, कहानी व आलेख-लेखन में रुचि उदयपुर (राजस्थान) में निवासइनकी रचनाएँ हंस, अहा! जिंदगी, विश्वगाथा, पर्तों की पड़ताल, माही व स्वर्णवाणी पत्रिका, दैनिक-भास्कर, राजस्थान-पत्रिका, सुबह-सबेरे, प्रभात-ख़बर समाचार-पत्र व हस्ताक्षर, वेब-दुनिया वेब पत्रिका व हिंदीनामा पेज़, बिजूका ब्लॉग में भी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं।

2 COMMENTS

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