‘Striyaan’, poems by Shweta Rai
1
स्त्रियाँ
कहने को हैं
जिनका कुछ भी नहीं,
वही बना दी जाती हैं जवाबदेह
सबकुछ के लिए…
2
स्त्रियाँ
होती हैं
नमक-सी नमकीन
चीनी-सी मीठी
मिर्ची-सी तीखी और
अचार-सी चटपटी
पर जीने के लिए
ढाल लेती हैं ये स्वंय को
पानी की तरह
कि होता है
पानी रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, आकारहीन…
3
स्त्रियाँ
करती हैं सुबह की शुरुआत
चाय के गर्म प्याले के साथ
रोटी बनातीं
कपड़े सुखातीं
ममत्व को सराहतीं
अकेले-अकेले में सपनों के आकाश को निहारतीं
रात होते ही
दुबक जाती हैं
बन्द किवाड़ों के पीछे
लग पुरुष की छातियों से
भूलकर सारी सामाजिक व्याधियों को…
4
स्त्रियाँ
करती हैं जिनका सृजन
उन्हीं में खोजतीं
उन्हीं से भागतीं
भटकतीं चिल्लातीं
देती हुई इतिहास को चुनौती
किसी तरह पा रही हैं थोड़ी पहचान
पर पा न सकी हैं अब तक
एक सुरक्षित स्थान…
5
स्त्रियाँ
अपनों की संगत में
जीती हैं स्वजीवन की विसंगतियों को
छुपाये हुए अपना चोटिल मर्म…