सौंदर्य की परख की यह विकृति राजनैतिक प्रभाव के कारण आयी है। गोरी चमड़ी के यूरोपियन लोग सारी दुनिया पर तीन सदियों से हावी रहे हैं। अधिकांश भागों को उन्होंने जीता और वहाँ अपना शासन क़ायम किया। वैसे भी उनके पास शक्ति और समृद्धि रही जो रंगीन जातियों के पास नहीं रही। अगर अफ़्रीका की नीग्रो जाति ने गोरे यूरोपियनों की तरह दुनिया पर शासन किया होता तो स्त्रियों की सुन्दरता की कसौटी निश्चय ही अलग होती।

कवियों और निबंधकारों ने नीग्रो त्वचा की मुलायम चिकनाहट तथा उसके आनंददायक स्पर्श एवं दर्शन का वर्णन किया होता; उनकी सौंदर्य-कल्पना में ख़ूबसूरत होंठ या सीधी नाक पूर्णता की विशेषताएँ होतीं।

सौंदर्यशास्त्र राजनीति से प्रभावित होता है; शक्ति सुन्दर दिखायी देती है—विशेषकर ग़ैरबराबर शक्ति।

विश्व-स्तर पर गोरी चमड़ी और विशाल शक्ति के संगम को भारत की विशिष्ट स्थिति से बहुत बल मिला है। गोरी चमड़ी वाले या वे जिनकी त्वचा कम काली है, वे ऊँची जातियों के लोग रहे। जाति के लिए एक हिंदुस्तानी शब्द ‘वर्ण’ है जिसका अर्थ सम्भवतः रंग है। ऋग्वेद में आर्यों को श्वेतवर्ण कहा गया है। प्रकृति तथा आसमान के चमकीले रंगों की पृष्ठभूमि में पूर्ण सफ़ेद या बिना कलफ़ का परिधान आँखों को अच्छा लगता है और पहनने वाले के सौंदर्य में इज़ाफ़ा करता है। किंतु इसका चमड़ी के रंग से कोई सम्बन्ध नहीं है। तथापि, विश्वव्यापी वर्चस्व और भारत की जातियों की विशेष स्थिति के मिलन के कारण गोरी चमड़ी को बहुत अधिक प्रतिष्ठा मिली है और इसे सुन्दरता की वस्तु बनाया गया है, बिना अन्य अनुषंगी कारकों के।

तो क्या चमड़ी का रंग सुन्दरता का अवयव नहीं है? जब नवीनता का तत्व देखने वाले को गुदगुदाता है तो गोरी चमड़ी मुलायम संगमरमर की तरह लगती है और मेरा अनुमान है कि इसी तर्क से काली, भूरी या गंदमी त्वचा केले के पेड़ के तने जैसी लगेगी। जब नवीनता का तत्व ख़त्म होगा तो सफ़ेद चमड़ी में दाग़ नज़र आएँगे और काली में इकसुरापन या नीरसता। अतः चमड़ी का रंग सुन्दरता की कसौटी नहीं हो सकती।

यदि त्वचा का कोई गुण सुन्दरता का अवयव हो सकता है तो वह होगा उसका टेक्सचर, नरम, अटूट और समान बुनावट जो कभी-कभी सर्वश्रेष्ठ रूप में चीन में या भूरी, गंदमी त्वचा की अफ़्रीकी, भारतीय या इसी प्रकार के अन्य देशों की स्त्रियों में मिलेगी।

शायद मैंने पलड़ा दूसरी ओर झुका दिया है और यह प्रायः होता है जब पहले वाले झुकाव को ठीक किया जाता है।

नरम, अटूट और समान बुनावट गोरी त्वचा में भी पायी जाती है, हालाँकि यह और भी विरल है, जो काली त्वचा की तरह ही ख़ून में पागलपन या तूफ़ान उठा सकती है।

यद्यपि गोरी और काली में से किसी एक को बेहतर मानने का कोई तुक नहीं है, कुछ व्यक्तिनिष्ठ प्रभावों का ज़िक्र किया जा सकता है। सभी स्त्रियाँ सुन्दर होती हैं। कुछ दूसरों की तुलना में अधिक सुन्दर हो सकती हैं। गोरी त्वचा वाली सुन्दरी में खुलापन और भोलापन टपकता है और उनकी सुन्दरता आह्लादकारी होती है, जैसे कलकल बहता स्वच्छ झरना या चाँदनी में पहाड़ी नदी की पारदर्शीय गहराई। काली त्वचा वाली सुन्दरी ज़िन्दगी और सृष्टि के रहस्यों को जगाती है, वह गति जो मछली को उसकी आँखें, हथिनी को उसकी मंद-मंद चाल, बाँझ को गर्भ धारण की संतुष्टि और इसी तरह के अन्य रहस्यों की सृष्टि करती है जिनमें गहराई, गहराई से मिलती है।

सुन्दरता और यौनिकता के बीच प्रगाढ़ सम्बन्ध होता है। काली स्त्रियों ने वर्चस्ववादी पुरुष की यौनिकता को आकृष्ट किया है किंतु रात्रि क्लबों में या छिपे तौर पर। भारत की जाति-व्यवस्था और बाधाएँ खड़ी करती है। न केवल ऊँची जातियों और निम्न जातियों की रहन-सहन की शैली, भाषा और व्यवहार अलग-अलग होता है बल्कि इसके बीच छुआछूत भी बनी रहती है, कम से कम बाहरी तौर पर। काली त्वचा की निम्न जाति की स्त्री जब सच्चा प्यार भी करती है तब वह ऊँची जाति की स्त्रियों की तरह मन की भावनाओं को छिपाने का प्रयास नहीं करती। तथापि यौनिकता के बिना प्रेम और प्रेम के बिना सुन्दरता नहीं होती।

जो स्त्री प्यार करती है और प्यार पाती है, वह तारों भरे आसमान की तरह सुन्दरता बिखेरती है, चाहे वह गोरी हो या काली। काली स्त्री को हाल ही के अतीत में इस प्यार से वंचित रखा गया है—उनके द्वारा जो सुन्दरता की बात करते हैं और उसके गीत गाते हैं। विभिन्न प्रकार की जीवन-शैलियों, या भारत की जाति-व्यवस्था, या सारी दुनिया में गोरे और काले के पूर्वाग्रहों के कारण जो बाधाएँ बनी हुई हैं, उनके हटने में समय लगेगा। सबसे बड़ी बाधा तो इस निरी भूल के कारण है कि सुन्दरता गोरी चमड़ी का गुण है।

रितिका श्रीवास्तव की कविता 'सुन्दर और अच्छी'

Book by Ram Manohar Lohia: