तुम वही तो हो
जिसकी कहानी लिखी गई थी
रोम की सभ्यताओं में
इटली की गलियों में
बेबीलोन के झूलते महलों में,
टेथिस सागर के अंदर
जो अब लुप्त हो गया है,
तुम्हें पता है वो लुप्त होकर क्या बना
वो बना एक अथाह रेगिस्तान
मीलों फैली वो रेतीली मिट्टी
उस पर बिना पानी के उगें हो मानो
वो कैक्टस के फूल,
उसी तरह एक रोज
तुम्हें तलाश होगी मेरी
जब दूर से चीखने की आवाजें तुम्हें सोने नहीं देंगी
वो आवाजें होंगी मेरी वेदना की
वो आवाजें होंगी मेरी..
जब मैं जोधपुर की ऊंची पहाड़ी से
एक रोज़ कूद गया था
मुझे किसी ने कहा था यहाँ से तुम कूद जाओ
तुम्हें हवाए थाम लेगी
तुम गिरोगे नहीं
और मैं कूद गया था
वो नीला जोधपुर अब मेरे लाल रक्त से लाल हो गया था
वो गालियाँ सारी, वो नीले रंग में रंगी दीवारें
आसमान का रंग नीला
कायलाना की झील नीली
वो सब एक लाल रंग में रंगा जा चुका था
मेरी हड्डियाँ बिखरी पड़ी थी
उस पहाड़ी की तलहटी में
हाथ तुम्हारी ओर था
पावँ जर्मनी की ओर था
मैं काँप रहा था
माँ ने उठाया, पानी पिलाया
मैं देख रहा था
मेरे घर की दीवारें
वो नीली हैं
पानी भी नीला था
सपना बड़ा पेचीदा था यह…