हज़रात! मैं किसी मजबूरी और दबाव के बगै़र और पूरे होश-व-हवास के साथ ये एलान करना चाहता हूँ कि स्विट्ज़रलैण्ड के एक बैंक में मेरा एकाउंट मौजूद है। आप इस बात को नहीं मानते तो न मानिए। मेरी बीवी भी पहले इस बात को नहीं मानती थी। अब न सिर्फ़ इस बात को मान रही है बल्कि मुझे भी मानने लगी है। आप यक़ीनन ये सोच रहे होंगे कि जब सारे लोग अपने खातों को पोशीदा रखने के सौ-सौ जतन कर रहे हैं तो ऐसे में मुझे अपने आप ही अपने खाते की मौजूदगी का एलान करने की ज़रूरत क्यों पेश आ रही है। एक दिन मैं दफ़्तर से बेहद थका मांदा घर पहुँचा तो बीवी ने कहा, “आप जो इतना थक जाते हैं तो इसका मतलब ये है कि आप दफ़्तर में काम भी करते हैं।”

मैंने कहा, “भला ये भी कोई पूछने की बात है। आदमी काम करने से ही तो थकता है। यही वजह है कि आज तक मैंने किसी सियास्तदान और मौलवी को थका मांदा नहीं पाया।”

बोली, “आदमी मेहनत करता है तो फिर उसे इसका सिला भी मिलता है। तुम जो इतनी मेहनत करते हो तो तुम्हें क्या मिल रहा है?”

ज़ाहिर है कि इस मुश्किल सवाल का आसान जवाब जब मुल्क के माहिरीन-ए-मआशियात के पास भी नहीं है तो मैं क्या ख़ाक जवाब देता। सो मैं ख़ामोश हो गया। मैंने सोचा कि तीस बरस की रिफ़ाक़त में, मैंने अपनी बीवी को रोज़ की ख़ुशियाँ उसी रोज़ देने के सिवाए और क्या किया है। उसकी झोली में एक-एक दिन और एक-एक पल को जोड़कर जमा किया हुआ तीस बरसों के अर्से पर फैला हुआ माज़ी तो है लेकिन आने वाले कल का कोई ऐसा लम्हा नहीं है जिसे आम ज़बान में ख़ुश आइंद मुस्तक़बिल कहते हैं। मैंने सोचा आज उसे थोड़ा-सा मुस्तक़बिल भी दे देते हैं। लिहाज़ा मैंने कहा, “ये तुम क्या मेहनत और सिला के पीछे हैरान हो रही हो। आज मैं तुम्हें एक ख़ुशख़बरी सुनाना चाहता हूँ कि स्विट्ज़रलैण्ड के एक बैंक में मेरा अकाउंट मौजूद है।”

ये सुनते ही मेरी बीवी का मुँह हैरत से खुला का खुला रह गया। बड़ी देर बाद जब वो बंद हुआ तो उसने अचानक घर के दरवाज़े और खिड़कियाँ बंद करनी शुरू कर दीं।

मैंने कहा, “ये क्या कर रही हो?”

बोली, “स्विट्ज़रलैण्ड के बैंक के खाते की बात कोई यूँ खुल्लम खुल्ला करता है। अगर ब-फ़रज़-ए-मुहाल स्विट्ज़रलैण्ड के किसी बैंक में तुम्हारा खाता है भी तो तुम्हें इसका एलान करने की क्या ज़रूरत है। अगर मुझे इस खाते का सुराग़ लगाना हो तो मैं किसी खु़फ़ीया एजेंसी के ज़रीए इसका पता लगा सकती हूँ या फिर एक दिन मुल्क के किसी अख़बार मैं ख़ुद ब-ख़ुद उसकी ख़बर छप जाएगी। मगर पहले ये बताओ क्या सचमुच स्विट्ज़रलैण्ड के बैंक में तुम्हारा खाता मौजूद है?”

मैंने कहा, “सच बताओ! आज तक मैंने तुमसे कभी झूठ कहा है?”

बोली, “सो तो है मगर ये खाता तुमने खोला कब?”

मैंने कहा, “चार साल पहले जब मैं यूरोप गया था?”

मेरे इस जवाब ने मेरी बीवी को और भी हैरत में डाल दिया क्योंकि उसे पता था कि जब मैं यूरोप के लिए रवाना हुआ था तो मेरी जेब में सिर्फ़ बीस डालर थे। अगरचे हुकूमत ने मुझे इजाज़त दी थी कि अगर में बैरूनी ज़र-ए-मुबादला हासिल करना चाहूँ तो पाँच सौ डालर तक ख़रीद सकता हूँ। लेकिन बैरूनी करंसी ख़रीदने के लिए पहले मुझे हिंदुस्तानी करंसी की ज़रूरत थी। बैरूनी करंसी तो मुझे मिल रही थी लेकिन असल सवाल हिंदुस्तानी करंसी का था। ये तो आप जानते हैं कि हिंदुस्तान में रहकर हिंदुस्तानी करंसी को हासिल करना कितना मुश्किल काम है। इतने में मेरी बीवी दुनिया का नक़्शा उठाकर ले आयी और बोली, “ज़रा दिखाओ तो सही। ये मुवा स्विट्ज़रलैण्ड है कहाँ? और इसमें हमारा अकाउंट कहाँ रखा हुआ है?”

मैंने दुनिया के नक़्शे में उसे स्विट्ज़रलैण्ड को दिखाने की कोशिश शुरू कर दी। लेकिन कम्बख़्त स्विट्ज़रलैण्ड इतना छोटा निकला कि उस पर जब-जब उँगली रखता तो पूरे का पूरा स्विट्ज़रलैण्ड ग़ायब हो जाता था। बिल-आख़िर क़लम की नोक से स्विट्ज़रलैण्ड के हुदूद-ए-अर्बा उस पर वाज़ेह किए तो बोली, “ये तो इतना छोटा है कि इसमें किसी बैंक की इमारत शायद ही समा सके। हमारे बैंक अकाउंट के समाने का नम्बर तो बाद में आएगा।”

मैंने कहा, “तुम ठीक कहती हो। मुझे याद है कि मैं अपने दोस्त के साथ जुनूबी फ़्रांस के रास्ते से ब-ज़रिये मोटर स्विट्ज़रलैण्ड में दाख़िल हुआ था। उस मुल्क का इतना ज़िक्र सुना था सोचा कि ज़रा उस मुल्क के अन्दर पहुँचकर उसका दीदार कर लेते हैं। मेरा दोस्त मोटर तेज़ चलाता है। थोड़ी देर बाद सड़क पर कुछ सिपाहियों ने हमें रोक लिया और पूछा, “कहाँ का इरादा है?”

अर्ज़ किया, “इक ज़रा स्विट्ज़रलैण्ड तक जाने का इरादा है।”

सिपाहियों ने कहा, “क़िब्ला! आप जहाँ जाना चाहते हैं, वहाँ से वापस जा रहे हैं।”

चार-व-नाचार हमें फिर स्विट्ज़रलैण्ड में वापस होना पड़ा और मोटर की रफ़्तार धीमी करनी पड़ी कि कहीं हम तेज़ रफ़्तारी में किसी और मुल्क में न निकल जाएँ।

बीवी ने कहा, “मगर तुम तो स्विट्ज़रलैण्ड सैर सपाटे के लिए गए थे। वहाँ के क़ुदरती मनाज़िर को देखने गए थे। ये अकाउंट खोलने वाला मुआमला कब ज़हूर में आया?”

मैंने कहा, “बेगम! कान खोलकर सुन लो। ये पहाड़ और क़ुदरती मनाज़िर सब बहाने बनाने की बातें हैं। आज तक कोई स्विट्ज़रलैण्ड में सिर्फ़ पहाड़ देखने के लिए नहीं गया। पहाड़ की आड़ में वो कुछ और करने जाता है। स्विट्ज़रलैण्ड के पहाड़ इसलिए अच्छे लगते हैं कि उनके दामन में स्विट्ज़रलैण्ड के वो मशहूर-व-मारूफ़ बैंक हैं जिनमें अपना पैसा जमा कराओ तो पैसा जमा करने वाले की बीवी तक को मालूम नहीं होता कि उसमें उसके शौहर का पैसा जमा है। एक साहब कह रहे थे कि बाज़ सूरतों में तो ख़ुद बैंक के इंतज़ामिया को भी पता नहीं होता कि उसके बैंक में किसका कितना पैसा जमा है। उन बैंकों को वहाँ से हटा लो तो स्विट्ज़रलैण्ड के क़ुदरती मनाज़िर और उन पहाड़ों की सारी ख़ूबसूरती धरी की धरी रह जाए। सच तो ये है कि जिसने पहलगाम और गुलमर्ग और पीर पंजाल में हिमालया के पहाड़ देखे हैं, उसे स्विट्ज़रलैण्ड के पहाड़ क्या पसन्द आएँगे। रही बर्फ़ की बात तो उसे तो हम हर रोज़ रेफ्रीजरेटर में देखते हैं। अब बताओ स्विट्ज़रलैण्ड में क्या रह जाता है। हाँ किसी ज़माने में यहाँ की घड़ियाँ बहुत मशहूर थीं। अब जापान ने उनकी ऐसी तैसी कर दी है। किसी ने सच कहा है कि घड़ी साज़ी के मुआमले में हर मुल्क का एक वक़्त होता है। स्विट्ज़रलैण्ड की घड़ी अब टल चुकी है। अब उसके बैंकों में पैसा जमा करने वालों पर घड़ी आयी है। इसलिए याद रखो कि जो कोई स्विट्ज़रलैण्ड जाएगा वहाँ अपना पैसा जमा कराके आएगा।”

बीवी ने कहा, “तो इसका मतलब ये हुआ कि तुम स्विट्ज़रलैण्ड सिर्फ़ अपना खाता खोलवाने गए थे?”

मैंने कहा, “और क्या पहाड़ देखने थोड़ी गया था।”

बोली, “जब खाता खोलवाना ही था तो हिंदुस्तान के किसी बैंक में रक़म जमा कराते।”

मैंने कहा, “क्या तुम नहीं जानतीं कि हमारे बैंकों की क्या हालत है। आए दिन तो डाके पड़ते रहते हैं। लोग बैंकों के खुलने का इतना इंतिज़ार नहीं करते जितना कि डाकू उन बैंकों के बंद होने का इंतिज़ार करते हैं। फिर स्विट्ज़रलैण्ड में बैंक का खाता खोलने का लुत्फ़ ही कुछ और है।”

और यूँ मैंने एक ख़ुश आइंद मुस्तक़बिल के कुछ लम्हे अपनी बीवी को सौंप दिए।

इस बात को होते तीन महीने बीत गए। न तो उसने मुझसे अकाउंट नम्बर पूछा, न अकाउंट का खु़फ़ीया नाम और न ही ये पूछा कि उस अकाउंट में कितनी रक़म जमा है। ये ज़रूर है कि पिछले तीन महीनों से वो बहुत ख़ुश है। उसकी ज़िन्दगी में एक ऐसा ख़ुशगवार एतिमाद पैदा हो चुका है जिसकी नज़ीर पिछले तीस बरसों में मुझे कभी नज़र न आयी। अलबत्ता ये ज़रूर है कि इस एतिराफ़ के बाद मैं अपने आप में एतिमाद की कमी महसूस कर रहा हूँ।

हज़रात! ये तो आप बख़ूबी जानते हैं कि बैंकों से मेरा कितना तअल्लुक़ हो सकता है। एक महफ़िल में एक मशहूर-व-मारूफ़ अदीब से एक मशहूर-व-मारूफ़ बैंकर का तआरुफ़ कराया गया तो बैंकर ने अदीब से कहा, “आप से मिलकर बड़ी ख़ुशी हुई लेकिन मेरी बदक़िस्मती ये है कि मैंने आज तक आप की कोई किताब नहीं पढ़ी।”

इस पर अदीब ने कहा, “मुझे भी आप से मिलकर बड़ी ख़ुशी हुई लेकिन मेरी बदक़िस्मती ये है कि आज तक मैं किसी बैंक में दाख़िल नहीं हुआ।”

मैं इतना बड़ा अदीब तो ख़ैर नहीं हूँ कि कभी किसी बैंक में क़दम ही न रख पाऊँ। मैं बैंक ज़रूर जाता हूँ। बैंक में मेरा खाता भी मौजूद है। मेरी तनख़्वाह चूँकि चैक से मिलती है, इसीलिए बैंक में खाता खोलना ज़रूरी था। ये और बात है कि मेरा खाता, मेरा और मेरी बीवी का, ज्वाइंट अकाउंट है। इस ज्वाइंट अकाउंट की ख़ुसूसियत ये है कि उसमें रक़म जमा करने की ज़िम्मेदारी तो मेरी होती है मगर उसमें से रक़म निकालने का ख़ुशगवार फ़रीज़ा मेरी बीवी को अंजाम देना पड़ता है। अंदुरून-ए-मुल्क अपनी तो ये माली हालत है कि कोई आफ़त का मारा मुझसे बीस पच्चीस रुपये भी उधार माँगता है तो मैं उसका बेहद शुक्रिया अदा करता हूँ। उसे रक़म तो नहीं देता अलबत्ता शुक्रिया इस बात का अदा करता हूँ कि वो मुझे इस क़ाबिल तो समझता है कि मुझसे बीस पच्चीस रुपये उधार माँगे जा सकें।

इस सूरत-ए-हाल के बावजूद स्विट्ज़रलैण्ड के बैंक में मेरा खाता मौजूद है और इस मुआमले को आपके सामने रखने की वजह सिर्फ़ इतनी है कि पिछले तीन महीनों से मैं अजीब-व-ग़रीब कैफ़ियत से गुज़र रहा हूँ। जैसा कि आप जानते हैं कि मैंने पूरी राज़दारी और ईमानदारी के साथ अपने खाता की इत्तिला अपनी बीवी को दी थी। मुझे यक़ीन था कि वो ख़ानदान के इस राज़ को अपने सीने में छुपाए रखेगी। मगर रफ़्ता-रफ़्ता मुझे एहसास होने लगा कि इस राज़ की रोशनी मेरे घर के अतराफ़ धीरे-धीरे फैलने लगी है।

एक महीने पहले की बात है। मैं मोहल्ले की एक दुकान से मोज़े ख़रीदने गया था। मुझे मोज़ों की एक जोड़ी पसन्द आयी लेकिन दुकानदार ने क़ीमत जो बतायी वो हिंदुस्तान में मेरे मौजूदा बैंक बैलंस की बिसात से बाहर थी। दुकानदार ने मुझे आँख मारकर कहा, “साहब! आप ये मोज़े लीजिए। बीस पच्चीस रुपय के फ़र्क़ पर न जाइए। बाक़ी पैसे बाद में दीजिए जब स्विट्ज़रलैण्ड से आपका पैसा आ जाएगा।”

थोड़ी देर के लिए मैं चौंक-सा गया लेकिन सोचा कि इन दिनों चूँकि स्विट्ज़रलैण्ड के बैंकों का बहुत चर्चा है इसलिए दुकानदार ने मज़ाक़ में ये बात कही होगी। फिर मैंने महसूस किया कि मोहल्ले के वो लोग जो मुझसे मुँह छुपाते थे या मुझसे कतराते थे न सिर्फ़ अपना मुँह दिखाने लगे हैं, बल्कि ज़रूरत से ज़्यादा सलाम भी करने लगे हैं। पड़ोसियों के बारे में आप जानते हैं कि ये सिर्फ़ आपकी ख़ुशियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और अगर आप की ज़िन्दगी में दुःख न हों तो उन्हें पैदा करने की कोशिश भी करते हैं। ये पड़ोसी अब मुझे अजीब-व-ग़रीब नज़रों से देखते हैं।

मेरे एक पड़ोसी कपड़े का कारोबार करते हैं लेकिन कारोबार करने का ढंग कुछ ऐसा है जैसे सारे मुल्क को नंगा करके छोड़ेंगे। पैसे की वो रेल पेल है कि न जाने इतना पैसा कहाँ रखते हैं। बीस बरसों के पड़ोसी हैं लेकिन उनसे तअल्लुक़ात पिछले दो महीनों में ही क़ायम हुए। उनकी बीवी इन दिनों मेरी बीवी की सबसे अच्छी और चहेती सहेली बनी हुई है। दो तीन मर्तबा मुझे भी अपने घर बुला चुके हैं। जब भी बुलाते हैं मेरे साथ वो सुलूक करते हैं जो अह्ल-ए-ग़रज़ बेईमान वज़ीरों के साथ रवा रखते हैं। पिछले हफ़्ता मेरी बीवी ने बताया कि मेरी पड़ोसी की बीवी उससे ये जानना चाहती है कि स्विट्ज़रलैण्ड के बैंक में खाता खोलने का क्या तरीक़ा है?

मैंने कहा, “उन्हें कैसे मालूम हुआ कि मेरा खाता स्विट्ज़रलैण्ड के बैंक में मौजूद है?”

बीवी ने कहा, “तुम भी कैसी बातें करते हो। उन्हें कैसे पता चल सकता है कि स्विट्ज़रलैण्ड के बैंक में तुम्हारा खाता है। तुम चूँकि पढ़े लिखे आदमी हो इसीलिए तुमसे खाता खोलने का तरीक़ा जानना चाहते होंगे। बताने में क्या हर्ज है, आख़िर को पड़ोसी हैं।”

मैंने कहा, “पड़ोसी तो बीस बरस से हैं। लेकिन पड़ोसियों का सा सुलूक सिर्फ़ पिछले दो महीनों से क्यों कर रहे हैं?”

फिर भी मैंने खाता खोलने का तरीक़ा उन्हें बता दिया। यहाँ तक तो ख़ैर ठीक था। परसों एक अजीब-व-ग़रीब वाक़िया पेश आया। मैं सुबह ड्राइंगरूम में बैठा दाढ़ी बना रहा था कि एक भिखारी हस्ब-ए-मामूल मेरे घर पर आवाज़ लगाने लगा। दूसरे भिखारी ने, जो मेरे पड़ोसी के घर पर खड़ा था, मेरे घर के सामने खड़े हुए भिखारी से कहा,”मियाँ! उस घर पर आवाज़ लगाकर क्यों अपना वक़्त ज़ाए करते हो। उसका तो सारा पैसा स्विट्ज़रलैण्ड में है। नाहक़ क्यों उन्हें तंग करते हो।”

पानी अब मेरे सर से ऊँचा हो चुका था। मैंने फ़ौरन अपनी बीवी को तलब किया और कहा, “तुम्हें याद होगा कि तीन महीने पहले मैंने तुम्हें इस राज़ से वाक़िफ़ कराया था कि स्विट्ज़रलैण्ड के एक बैंक में मेरा अकाउंट मौजूद है।”

बीवी ने कहा, “याद रखने की बात करते हो। मैं तो दिन के चौबीसों घण्टे इस बात को याद रखती हूँ। तुम्हें अब अचानक उस अकाउंट की क्यों याद आ गई। तुमने पहली बार अपने अकाउंट का जो एतिराफ़ किया था क्या वो ग़लत था?”

मैंने कहा, “ग़लत नहीं था मगर मेरा एतिराफ़ अधूरा था। मैंने तुम्हें अपने खाते का नम्बर, खाते का खु़फ़ीया नाम और खाते में जमा रक़म के बारे में कुछ भी नहीं बताया था।”

बीवी ने कहा,”मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि तुम्हारे खाते का नम्बर ‘चार सौ बीस’ है, खाता का खु़फ़ीया नाम ‘गोभी का फूल’ है और उस खाते में स्विट्ज़रलैण्ड के सिर्फ़ दस मार्क जमा हैं।”

मैंने हैरत से पूछा, “तुम्हें किसने बताया?”

बोली, “मैंने इस सिलसिले में एक खु़फ़ीया एजेंसी की ख़िदमात हासिल की थीं। ‘फ़ियर-सैक्स’ नाम है उसका। स्विट्ज़रलैण्ड के खातों का सुराग़ इसी तरह लगाया जाता है।”

मैंने कहा, “बात दरअस्ल ये थी कि स्विट्ज़रलैण्ड में जब देखने को कुछ भी नहीं मिला और वहाँ से वापस चलते वक़्त मेरी जेब में दस स्विस मार्क बच रहे तो मैंने सोचा क्यों न इस रक़म को स्विट्ज़रलैण्ड के किसी बैंक में जमा क़रा दूँ। हिंदुस्तान में ये सहूलत है कि किसी तारीख़ी मुक़ाम को देखने जाते हैं तो उस मुक़ाम पर अपना नाम भी लिख कर आ सकते हैं ताकि न सिर्फ़ सनद रहे बल्कि अपनी निशानी भी मौजूद रहे। स्विट्ज़रलैण्ड में मुझे ये सहूलत भी मयस्सर नहीं थी। लिहाज़ा मैंने यादगार के तौर पर अपना अकाउंट खोल दिया। ये कोई अहमियत की बात नहीं है और तुम्हें भी इसे अहमियत नहीं देना चाहिए। अब तो मैं इस अकाउंट को बंद कराने की सोच रहा हूँ।”

बीवी ने कहा, “ख़बरदार! जो इस अकाउंट को बंद किया तो। आज से उसे भी ज्वाइंट अकाउंट ही समझो। इन दिनों समाज में इज़्ज़त उसी की है जिसका स्विट्ज़रलैण्ड के बैंकों में अकाउंट हो। चार बरस पहले जब तुम स्विट्ज़रलैण्ड गए थे तो हिंदुस्तान में स्विट्ज़रलैण्ड का इतना क्रेज़ नहीं था। तुमने तो जज़्बाती होकर ग़फ़लत में उस अकाउंट को खोला था। मुझे क्या पता था कि कभी तुम्हारी ग़फ़लत से फ़ायदा भी पहुँच सकता है। तुम यक़ीन करो स्विट्ज़रलैण्ड के बैंक में जमा किए हुए तुम्हारे दस मार्क हिंदुस्तान में दस करोड़ के बराबर हैं। देखते नहीं समाज में तुम्हारी कितनी इज़्ज़त हो रही है। कितनी दावतें खा चुके हो। दुकानदार उधार तक देने लगे हैं। जो लोग बराबरी के साथ मिलते थे वो अब झुक-झुककर मिलने लगे हैं। और तो और मुहल्ले के लेडीज़ क्लब की चेयरपर्सन के तौर पर आज मेरा बिला मुक़ाबला इंतिख़ाब होने वाला है। ये सब किसकी बदौलत है। ज़रा सोचो तो। मुल्क के सारे शुरफ़ा अब अपने अकाउंट स्विट्ज़रलैण्ड के बैंकों में खोलने लगे हैं और तुम अपना खाता बंद करने चले हो। ख़ुदा का शुक्र अदा करो कि इक इत्तिफ़ाक़ी ग़लती से तुम्हारा शुमार भी शोरफ़ा में होने लगा है वर्ना ज़िन्दगी भर यूँ ही जूतियाँ चटख़ाते फिरते। ये मेरी गुज़ारिश नहीं हुक्म है कि ये अकाउंट अब बंद नहीं होगा।”

ये कहकर मेरी बीवी लेडीज़ कलब की चेयरपर्सन के इंतिख़ाब में हिस्सा लेने के लिए चली गई और मैं दुनिया के नक़्शे में फिर से स्विट्ज़रलैण्ड को तलाश करने लगा।

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उर्दू लेखक व व्यंग्यकार।