‘बहुत घुटी-घुटी रहती हो
बस खुलती नहीं हो तुम!’
खुलने के लिए जानते हो
बहुत से साल पीछे जाना होगा
और फिर वहीं से चलना होगा
जहाँ से काँधे पे बस्ता उठाकर
स्कूल जाना शुरू किया था
इस ज़ेहन को बदलकर
कोई नया ज़ेहन लगवाना होगा
और इस सबके बाद जिस रोज़
खुलकर
खिलखिलाकर
ठहाका लगाकर
किसी बात पे जब हँसूँगी
तब पहचानोगे क्या?