Tag: A poem on periods

Mamta Kalia

उँगलियों के पोरों पर दिन गिनती

'Ungliyon Ke Poron Par Din Ginti', a poem by Mamta Kalia उँगलियों पर गिन रही है दिन खाँटी घरेलू औरत सोनू और मुनिया पूछते हैं 'क्या मिलाती रहती...
कॉपी नहीं, शेयर करें! ;)