Tag: Adarsh Bhushan
फ़रवरी
फ़रवरी इतना बुरा भी नहीं है!
मैं यह समझ पाने में हमेशा असमर्थ रहा कि
आदिम सभ्यताओं को इस महीने से इतनी चिढ़ क्यों थी?
रोमन सभ्यता...
कौन ईश्वर
नहीं है तुम्हारी देह में
यह रुधिर जिसके वर्ण में
अब ढल रही है दिवा
और अँधेरा सालता है
रोज़ थोड़ी मर रही आबादियों में
रोज़ थोड़ी बढ़ रही...
यूस्टीना बारगिल्स्का की कविताएँ
1977 में जन्मीं, पोलिश कवयित्री व उपन्यासकार यूस्टीना बारगिल्स्का (Justyna Bargielska) के अब तक सात कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और उन्हें दो...
दुन्या मिखाइल की कविताएँ ‘मोची’ और ‘घूमना’
कविताएँ: दुन्या मिखाइल (Dunya Mikhail)
अनुवाद: आदर्श भूषण
मोची (Shoemaker)
एक कुशल मोची
अपने पूरे जीवनकाल में
न जाने कितने क़िस्म के पैरों के लिए
चमड़े चमकाता है और
कीलें ठोकता...
गिलहरी
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भाषाओं में नहीं थीं जगहें
न ही था इतना धैर्य कि
एक भागते हुए मन को आवाज़ देकर हौले-से रोक लें
बुला लें पास जिसमें न संदेह...
डेविड बॉटम्स की कविता ‘पिता का बायाँ हाथ’
कविता: पिता का बायाँ हाथ (My Father's Left Hand)
कवि: डेविड बॉटम्स (David Bottoms)
अनुवाद: आदर्श भूषण
कभी-कभी पिता का हाथ उनके घुटनों पर फिरता है
अजीब गोलाइयों...
शैरन ओल्ड्स की कविता ‘उनकी चुप्पी’
शैरन ओल्ड्स (Sharon Olds) अमेरिकी कवयित्री हैं और न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी में क्रिएटिव राइटिंग पढ़ाती हैं। उन्हें कविता में पुलत्ज़र पुरस्कार प्राप्त है। यहाँ...
गायताल
चप्पल टूटने से पहले ख़रीदी चप्पल
बनियान फटने से पहले नया बनियान
एक नये अभाव के आने से पहले एक नयी ज़रूरत ईजाद करता रहा
लड़ने से...
विपश्यना
सहजता से कहे गए शब्दों के अर्थ अक्सर चेष्टापूर्ण और कठिन होते हैं जैसे तुमने कहा कि तुम्हें मेरा मौन काटता है और उससे...
समय से मत लड़ो
लड़ो
लड़ो वापस जाते हुए सुख से
अड़ जाओ उसके रास्ते में ज़िद करते
पैर पटककर—
बाप की पतलून खींचकर मेले में कुछ देर और ठहर
पसन्द का खिलौना...
लाठी भी कोई खाने की चीज़ होती है क्या?
हमारे देश में लाठियाँ कब आयीं
यह उचित प्रश्न नहीं
कहाँ से आयीं
यह भी बेहूदगी भरा सवाल होगा
लाठियाँ कैसे चलीं
कहाँ चलीं
कहाँ से कहाँ तक चलीं
क्या पाया...
आदमी का गाँव
हर आदमी के अन्दर एक गाँव होता है
जो शहर नहीं होना चाहता
बाहर का भागता हुआ शहर
अन्दर के गाँव को बेढंगी से छूता रहता है
जैसे उसने...