Tag: Adarsh Bhushan

Adarsh Bhushan

फ़रवरी

फ़रवरी इतना बुरा भी नहीं है! मैं यह समझ पाने में हमेशा असमर्थ रहा कि आदिम सभ्यताओं को इस महीने से इतनी चिढ़ क्यों थी? रोमन सभ्यता...
God, Abstract Human

कौन ईश्वर

नहीं है तुम्हारी देह में यह रुधिर जिसके वर्ण में अब ढल रही है दिवा और अँधेरा सालता है रोज़ थोड़ी मर रही आबादियों में रोज़ थोड़ी बढ़ रही...
Justyna Bargielska

यूस्टीना बारगिल्स्का की कविताएँ

1977 में जन्मीं, पोलिश कवयित्री व उपन्यासकार यूस्टीना बारगिल्स्का (Justyna Bargielska) के अब तक सात कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और उन्हें दो...
Dunya Mikhail

दुन्या मिखाइल की कविताएँ ‘मोची’ और ‘घूमना’

कविताएँ: दुन्या मिखाइल (Dunya Mikhail) अनुवाद: आदर्श भूषण मोची (Shoemaker) एक कुशल मोची अपने पूरे जीवनकाल में न जाने कितने क़िस्म के पैरों के लिए चमड़े चमकाता है और कीलें ठोकता...
Squirrel

गिलहरी

1 भाषाओं में नहीं थीं जगहें न ही था इतना धैर्य कि एक भागते हुए मन को आवाज़ देकर हौले-से रोक लें बुला लें पास जिसमें न संदेह...
David Bottoms

डेविड बॉटम्स की कविता ‘पिता का बायाँ हाथ’

कविता: पिता का बायाँ हाथ (My Father's Left Hand) कवि: डेविड बॉटम्स (David Bottoms) अनुवाद: आदर्श भूषण कभी-कभी पिता का हाथ उनके घुटनों पर फिरता है अजीब गोलाइयों...
Sharon Olds

शैरन ओल्ड्स की कविता ‘उनकी चुप्पी’

शैरन ओल्ड्स (Sharon Olds) अमेरिकी कवयित्री हैं और न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी में क्रिएटिव राइटिंग पढ़ाती हैं। उन्हें कविता में पुलत्ज़र पुरस्कार प्राप्त है। यहाँ...
Adarsh Bhushan

गायताल

चप्पल टूटने से पहले ख़रीदी चप्पल बनियान फटने से पहले नया बनियान एक नये अभाव के आने से पहले एक नयी ज़रूरत ईजाद करता रहा लड़ने से...
Adarsh Bhushan

विपश्यना

सहजता से कहे गए शब्दों के अर्थ अक्सर चेष्टापूर्ण और कठिन होते हैं जैसे तुमने कहा कि तुम्हें मेरा मौन काटता है और उससे...
Adarsh Bhushan

समय से मत लड़ो

लड़ो लड़ो वापस जाते हुए सुख से अड़ जाओ उसके रास्ते में ज़िद करते पैर पटककर— बाप की पतलून खींचकर मेले में कुछ देर और ठहर पसन्द का खिलौना...
Adarsh Bhushan

लाठी भी कोई खाने की चीज़ होती है क्या?

हमारे देश में लाठियाँ कब आयीं यह उचित प्रश्न नहीं कहाँ से आयीं यह भी बेहूदगी भरा सवाल होगा लाठियाँ कैसे चलीं कहाँ चलीं कहाँ से कहाँ तक चलीं क्या पाया...
Man outside a village home

आदमी का गाँव

हर आदमी के अन्दर एक गाँव होता है जो शहर नहीं होना चाहता बाहर का भागता हुआ शहर अन्दर के गाँव को बेढंगी से छूता रहता है जैसे उसने...
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