Tag: Alok Dhanwa
सफ़ेद रात
पुराने शहर की इस छत पर
पूरे चाँद की रात
याद आ रही है वर्षों पहले की
जंगल की एक रातजब चाँद के नीचे
जंगल पुकार रहे थे...
प्यार
पुराने टूटे ट्रकों के पीछे मैंने किया प्यार
कई बार तो उनमें घुसकर
लतरों से भरे कबाड़ में जगह निकालते
शाम को अपना परदा बनाते हुए
अक्सर ही...
सवाल ज़्यादा हैं
पुराने शहर उड़ना
चाहते हैं
लेकिन पंख उनके डूबते हैं
अक्सर ख़ून के कीचड़ में!मैं अभी भी
उनके चौराहों पर कभी
भाषण देता हूँ
जैसा कि मेरा काम रहा
वर्षों से
लेकिन...
भूल पाने की लड़ाई
उसे भूलने की लड़ाई
लड़ता रहता हूँ
यह लड़ाई भी
दूसरी कठिन लड़ाइयों जैसी हैदुर्गम पथ जाते हैं उस ओरउसके साथ गुज़ारे
दिनों के भीतर से
उठती आती है...
गोली दाग़ो पोस्टर
यह उन्नीस सौ बहत्तर की बीस अप्रैल है या
किसी पेशेवर हत्यारे का दायाँ हाथ या किसी जासूस
का चमड़े का दस्ताना या किसी हमलावर की दूरबीन...
जनता का आदमी
बर्फ़ काटने वाली मशीन से आदमी काटने वाली मशीन तक
कौंधती हुई अमानवीय चमक के विरुद्ध
जलते हुए गाँवों के बीच से गुज़रती है मेरी कविता;
तेज़...
भागी हुई लड़कियाँ
1घर की ज़ंजीरें
कितना ज़्यादा दिखायी पड़ती हैं
जब घर से कोई लड़की भागती हैक्या उस रात की याद आ रही है
जो पुरानी फ़िल्मों में बार-बार आती थी
जब...
मुलाक़ातें
अचानक तुम आ जाओ
इतनी रेलें चलती हैं
भारत में
कभी
कहीं से भी आ सकती हो
मेरे पासकुछ दिन रहना इस घर में
जो उतना ही तुम्हारा भी है
तुम्हें...
फ़र्क़
आलोक धन्वा की कविता 'फ़र्क़' | 'Farq', a poem by Alok Dhanwaदेखना
एक दिन मैं भी उसी तरह शाम में
कुछ देर के लिए घूमने निकलूँगा
और...
चौक
उन स्त्रियों का वैभव मेरे साथ रहा
जिन्होंने मुझे चौक पार करना सिखाया।मेरे मोहल्ले की थीं वे
हर सुबह काम पर जाती थीं
मेरा स्कूल उनके रास्ते...
अचानक तुम आ जाओ
इतनी रेलें चलती हैं
भारत में
कभी
कहीं से भी आ सकती हो
मेरे पासकुछ दिन रहना इस घर में
जो उतना ही तुम्हारा भी है
तुम्हें देखने की प्यास...