Tag: Amandeep Gujral
औरतें
कुछ औरतों के नसीब में होते हैं महल
सजे-सजाए
ऊँची-ऊँची दीवारों वाले
जिनसे जूझती उनकी चीखें
दम तोड़ देती हैं उन दीवारों के भीतर ही कहीं
क्योंकि
बाहर निकलने का...
अनपढ़
अनपढ़ लोग किताबें नहीं पढ़ पाते
पर पढ़ लेते हैं
मन और माथे पर चढ़ी त्योरियाँ
वे सफ़ेद कमीजों की आड़ में
नहीं करते काले धंधे
पाँच सितारा होटलों...
एक प्रश्न
जिस तरह मैं पढ़ लेती हूँ
तुम्हारा मौन
तुम क्यों नहीं पढ़ पाते
मौन मेरा
कौन रोकता है तुम्हें
मेरा मैं होना
या
तुम्हारा तुम?***अमनदीप/ विम्मी
पापा आई लव यू
धूप मेरे हिस्से की लिए चलता रहा
वो शख्स मेरा बाप था बिन कहे जलता रहापलते थे मेरी आँख में जो ख़्वाब अधूरे न रहें
दिन-रात...
रोज़
मुझे फ़र्ज का जामा पहना
उसे अधिकार दे दिया गया
अब वो
अपना दिन-प्रतिदिन बढ़ता पेट देख
इठलाती है।
हर रोज़
कुछ चटक जाता है मेरे अन्दर
बार-बार इशारों में कराया...
कौआ और कोयल
छत के उपर, काँव-काँव कर
कौआ शोर मचाता है
ढीठ बना वो बैठा रहता
कोयल को बहुत सताता है
कोयल बोली-
कितनी मीठी मेरी बोली
सबका मन हर्षाती है
तेरी बोली...
मुर्दा भी शोर करता है
मुर्दा भी शोर करता है
ऐसा शोर जिसमें
कान बहरे और ज़बान गूँगी हो जाती है
एक तीव्र सी पीड़ा धरा को छोड़
स्वर्ग तक पहुँचती है
और रिक्त हो जाता...
इंतज़ार
एक ज़माना गुज़र गया
जाते-जाते कह गया
चाँदी उतर आई है बालों पर
थक गई होगी,
बुन क्यों नहीं लेती ख्यालों की चारपाई?
सुस्ता ले ज़रा
ख्वाबों की चादर ओढ़
कुनकुनी...
ऐ दोस्त
एक शाम हुआ करती थी
जो ढल गई
तेरे जाने के बाद ऐ दोस्त!
चाय की चुस्कियों में अब
मज़ा नहीं रहा।
बादल गरजते रहे, बरसते भी रहे
चौकोर टेबल,
और वो...
एक किरण
माँ बनने से पहले
कई बार माँ बनी थी
तब,
जब उम्मीद जगी थी
तब भी जब बच्चा गुज़रा था
तब,
जब बाज़ार में टंगे छोटे कपड़ों को देख
शरमाया था...
मेरी माँ
माँ थी जब
आँखों में आने से पहले ही
पढ़ लेती थी
शब्द, सपने
यहाँ तक कि आँसू भी
दरवाजे तक पँहुचने के पहले
दस्तक देते थे मेरे जज़्बात
मेरी खुशबू
मेरे...
मी टू
मैं,
एक साधारण नारी
घर से बाहर जाती हूँ
रोटी जुटानी होती है, दो वक़्त की
अनपढ़ नहीं छोड़ सकती बच्चों को
सिर छुपाने की जगह
कुछ कपड़े
ख्वाहिशें कुछ ज्यादा...