Tag: Ashok Vajpeyi

Ashok Vajpeyi

स्थगित नहीं होगा शब्द

स्थगित नहीं होगा शब्द— घुप्प अंधेरे में चकाचौंध में बेतहाशा बारिश में चलता रहेगा प्रेम की तरह, प्राचीन मन्दिर में सदियों पहले की व्याप्त प्रार्थना की तरह— स्थगित नहीं होगा शब्द— मौन की...
Ashok Vajpeyi

वही तो नहीं रहने देगा

कविता संग्रह 'कहीं नहीं वहीं' से  प्रेम वही तो नहीं रहने देगा उसके शरीर की लय को, उसके लावण्य की आभा को उसके नेत्रों के क्षितिज ताकते एकान्त...
Ashok Vajpeyi

अलग-साथ समय

उसका समय मेरे समय से अलग है— जैसे उसका बचपन, उसकी गुड़ियाँ-चिड़ियाँ यौवन आने की उसकी पहली सलज्ज पहचान अलग है। उसकी आयु उसके एकान्त में उसका प्रस्फुटन, उसकी इच्छाओं...
Ashok Vajpeyi

फिर आऊँगा

मैं फिर आऊँगा भले ही जन्मान्तर के बाद तुम्हारे ही पास। मैं झगड़ा करूँगा देवताओं से और नक्षत्रों की बाधाएँ पार करके सुबह खिड़की पर अकस्मात् आए दूर देश के पक्षी...
Ashok Vajpeyi

हाथ

1 यह सुख भी असह्य हो जाएगा यह पूरे संसार का जैसे एक फूल में सिमटकर हाथ में आ जाना यह एक तिनके का उड़ना घोंसले का सपना बनकर आकाश में यह...
Ashok Vajpeyi

‘कहीं नहीं वहीं’ से कविताएँ

'कहीं नहीं वहीं' से कविताएँ सिर्फ़ नहीं नहीं, सिर्फ़ आत्मा ही नहीं झुलसेगी प्रेम में देह भी झुलस जाएगी उसकी आँच से नहीं, सिर्फ़ देह ही नहीं जलेगी अन्त्येष्टि में आत्मा भी...
Ashok Vajpeyi

वही नहीं

शाम होने पर पक्षी लौटते हैं पर वही नहीं जो गए थे रात होने पर फिर से जल उठती है दीपशिखा पर वही नहीं जो कल बुझ गयी थी सूखी...
Ashok Vajpeyi

अन्त के बाद

'कहीं नहीं वहीं' से 1 अन्त के बाद हम चुपचाप नहीं बैठेंगे। फिर झगड़ेंगे। फिर खोजेंगे। फिर सीमा लांघेंगे। क्षिति जल पावक गगन समीर से फिर कहेंगे— चलो हमको रूप दो, आकार दो। वही जो पहले...
Ashok Vajpeyi

प्यार करते हुए सूर्य-स्मरण

यह कविता यहाँ सुनें: https://youtu.be/yUBaa56oly8 जब मेरे होठों पर तुम्हारे होंठों की परछाइयाँ झुक आती हैं और मेरी उँगलियाँ तुम्हारी उँगलियों की धूप में तपने लगती हैं तब सिर्फ़ आँखें हैं जो...
Ashok Vajpeyi

कितने दिन और बचे हैं?

कोई नहीं जानता कि कितने दिन और बचे हैं? चोंच में दाने दबाए अपने घोंसले की ओर उड़ती चिड़िया कब सुस्ताने बैठ जाएगी बिजली के एक तार पर और आल्हाद...
Ashok Vajpeyi

थोड़ा-सा

अगर बच सका तो वही बचेगा हम सब में थोड़ा-सा आदमी– जो रौब के सामने नहीं गिड़गिड़ाता, अपने बच्चे के नम्बर बढ़वाने नहीं जाता मास्टर के घर जो रास्ते...
Ashok Vajpeyi

एक खिड़की

'Ek Khidki', a poem by Ashok Vajpeyi मौसम बदले, न बदले हमें उम्मीद की कम से कम एक खिड़की तो खुली रखनी चाहिए। शायद कोई गृहिणी वसंती रेशम में लिपटी उस...
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