Tag: Capitalism
बाज़ार का हँसना लाज़िम है
सब कुछ बाज़ार का हिस्सा है
ख़रीदी जा रही हर चीज़ के बदले
चुकायी जा रही है एक क़ीमत
किस स्वेटर में कितनी गर्माहट हो
यह ग्राहक को...
तुम्हारी जोंकों की क्षय
जोंकें? — जो अपनी परवरिश के लिए धरती पर मेहनत का सहारा नहीं लेतीं। वे दूसरों के अर्जित ख़ून पर गुज़र करती हैं। मानुषी...
इस गली के मोड़ पर
इस गली के मोड़ पर इक अज़ीज़ दोस्त ने
मेरे अश्क पोंछकर
आज मुझसे ये कहा—
यूँ न दिल जलाओ तुम
लूट-मार का है राज
जल रहा है कुल...
इतिहास
खेतों में, खलिहानों में
मिल और कारख़ानों में
चल-सागर की लहरों में
इस उपजाऊ धरती के
उत्तप्त गर्भ के अन्दर
कीड़ों से रेंगा करते
वे ख़ून पसीना करते!
वे अन्न-अनाज उगाते
वे...
तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आँकड़ें झूठे हैं, ये दावा किताबी है
उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर...
बैल-व्यथा
तुम मुझे हरी चुमकार से घेरकर
अपनी व्यवस्था की नाँद में
जिस भाषा के भूसे की सानी डाल गए हो—
एक खूँटे से बँधा हुआ
अपनी नाथ को चाटता...
निवाला
'Niwala', a nazm by
Ali Sardar Jafri
माँ है रेशम के कारख़ाने में
बाप मसरूफ़ सूती मिल में है
कोख से माँ की जब से निकला है
बच्चा...
मन करता है
'Man Karta Hai', a poem by Baba Nagarjun
मन करता है :
नंगा होकर कुछ घण्टों तक सागर-तट पर मैं खड़ा रहूँ
यों भी क्या कपड़ा मिलता...
जिसके संग बाज़ार हो लिया
'Jiske Sang Bazar Ho Liya'
a poem by Shiva
जिसके संग बाज़ार हो लिया
उसका बेड़ा पार हो लिया
नौ सौ चूहे खाकर बिल्ला
हज को फिर तैयार हो...
दस का पुराना नोट
उम्र यही कोई साठ साल रही होगी। रंग सांवला और बाल पूरे सफेद हो चुके थे। पान खाती थी और पूरे ठसक से चलती...
बारगेनिंग
"आज एक रिक्शेवाले को सबक सिखा दिया। मुझसे पैसे ऐंठ रहा था, लेकिन मैंने भी उसे रख कर झाड़ दिया कि मैं भी यहीं का हूँ, सब जानता हूँ और बस बीस रुपये में उसे वापस भेज दिया।"