Tag: Capitalism

Market, Capitalism

बाज़ार का हँसना लाज़िम है

सब कुछ बाज़ार का हिस्सा है ख़रीदी जा रही हर चीज़ के बदले चुकायी जा रही है एक क़ीमत किस स्वेटर में कितनी गर्माहट हो यह ग्राहक को...
Rahul Sankrityayan

तुम्हारी जोंकों की क्षय

जोंकें? — जो अपनी परवरिश के लिए धरती पर मेहनत का सहारा नहीं लेतीं। वे दूसरों के अर्जित ख़ून पर गुज़र करती हैं। मानुषी...
Fahmida Riaz

इस गली के मोड़ पर

इस गली के मोड़ पर इक अज़ीज़ दोस्त ने मेरे अश्क पोंछकर आज मुझसे ये कहा— यूँ न दिल जलाओ तुम लूट-मार का है राज जल रहा है कुल...
Shailendra

इतिहास

खेतों में, खलिहानों में मिल और कारख़ानों में चल-सागर की लहरों में इस उपजाऊ धरती के उत्तप्त गर्भ के अन्दर कीड़ों से रेंगा करते वे ख़ून पसीना करते! वे अन्न-अनाज उगाते वे...
Adam Gondvi

तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है

तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है मगर ये आँकड़ें झूठे हैं, ये दावा किताबी है उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो इधर...
Manbahadur Singh

बैल-व्यथा

तुम मुझे हरी चुमकार से घेरकर अपनी व्यवस्था की नाँद में जिस भाषा के भूसे की सानी डाल गए हो— एक खूँटे से बँधा हुआ अपनी नाथ को चाटता...
Ali Sardar Jafri

निवाला

'Niwala', a nazm by Ali Sardar Jafri माँ है रेशम के कारख़ाने में बाप मसरूफ़ सूती मिल में है कोख से माँ की जब से निकला है बच्चा...
Baba Nagarjuna

मन करता है

'Man Karta Hai', a poem by Baba Nagarjun मन करता है : नंगा होकर कुछ घण्टों तक सागर-तट पर मैं खड़ा रहूँ यों भी क्या कपड़ा मिलता...
Smiling Man, Gamchha, Village, Labour

जिसके संग बाज़ार हो लिया

'Jiske Sang Bazar Ho Liya' a poem by Shiva जिसके संग बाज़ार हो लिया उसका बेड़ा पार हो लिया नौ सौ चूहे खाकर बिल्ला हज को फिर तैयार हो...

दस का पुराना नोट

उम्र यही कोई साठ साल रही होगी। रंग सांवला और बाल पूरे सफेद हो चुके थे। पान खाती थी और पूरे ठसक से चलती...
Rickshaw

बारगेनिंग

"आज एक रिक्शेवाले को सबक सिखा दिया। मुझसे पैसे ऐंठ रहा था, लेकिन मैंने भी उसे रख कर झाड़ दिया कि मैं भी यहीं का हूँ, सब जानता हूँ और बस बीस रुपये में उसे वापस भेज दिया।"
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