Tag: जाति
विध्वंस बनकर खड़ी होगी नफ़रत
तुमने बना लिया जिस नफ़रत को अपना कवच
विध्वंस बनकर खड़ी होगी रू-ब-रू एक दिन
तब नहीं बचेंगी शेष
आले में सहेजकर रखी बासी रोटियाँ
पूजाघरों में अगरबत्तियाँ,...
बस्स! बहुत हो चुका
जब भी देखता हूँ मैं
झाड़ू या गन्दगी से भरी बाल्टी
कनस्तर
किसी हाथ में
मेरी रगों में
दहकने लगते हैं
यातनाओं के कई हज़ार वर्ष एक साथ
जो फैले हैं...
हीरा डोम की ‘अछूत की शिकायत’ – हिन्दी की पहली दलित कविता
हीरा डोम भारतीय साहित्य में प्रथम दलित कवि के रूप में जाने जाते हैं, जिनकी केवल एक कविता 'अछूत की शिकायत', जो मूलतः भोजपुरी...
खेत उदास हैं
चिड़िया उदास है
जंगल के खालीपन पर,
बच्चे उदास हैं
भव्य अट्टालिकाओं के
खिड़की-दरवाज़ों में कील की तरह
ठुकी चिड़िया की उदासी पर,
खेत उदास हैं
भरपूर फ़सल के बाद भी
सिर...
जूता
हिकारत भरे शब्द चुभते हैं
त्वचा में
सुई की नोक की तरह
जब वे कहते हैं—
साथ चलना है तो क़दम बढ़ाओ
जल्दी-जल्दी
जबकि मेरे लिए क़दम बढ़ाना
पहाड़ पर चढ़ने...
कविता और फ़सल
ठण्डे कमरों में बैठकर
पसीने पर लिखना कविता
ठीक वैसा ही है
जैसे राजधानी में उगाना फ़सल
कोरे काग़ज़ों पर।
फ़सल हो या कविता
पसीने की पहचान हैं दोनों ही।
बिना पसीने...
ठाकुर का कुआँ
'Thakur Ka Kuan', a poem by Omprakash Valmiki
चूल्हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का
भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का
बैल ठाकुर का
हल...