Tag: Common Man

Dinkar

सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है

सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है, दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती...
Hungry, Poor

ग़ायब लोग

हम अक्षर थे मिटा दिए गए क्योंकि लोकतांत्रिक दस्तावेज़ विकास की ओर बढ़ने के लिए हमारा बोझ नहीं सह सकते थे हम तब लिखे गए जब जन गण मन लिखा...
Alok Dhanwa

जनता का आदमी

बर्फ़ काटने वाली मशीन से आदमी काटने वाली मशीन तक कौंधती हुई अमानवीय चमक के विरुद्ध जलते हुए गाँवों के बीच से गुज़रती है मेरी कविता; तेज़...

सन्नाटा

कलरव घर में नहीं रहा, सन्नाटा पसरा है, सुबह-सुबह ही सूरज का मुँह उतरा-उतरा है। पानी ठहरा जहाँ, वहाँ पर पत्थर बहता है, अपराधी ने देश बचाया हाकिम कहता...
Devendra Sharma

साधारण आदमी, प्रेम

साधारण आदमी थोड़ा अजीब होता है शायद एक साधारण आदमी होना और कुछ साधारण से सपने देखना जैसे भरपेट खाना सुकून भरी नींद या निहारना बारिश को बिना छत की...
Man on stairs

वह भला आदमी

वह भला-सा आदमी हमारे बीच की एक इकाई बन कल तक हमारे साथ था। वह चौराहे के इस ओर मुँह में पान की गिल्लोरियाँ दबाए चहका करता था यहाँ-वहाँ खादी...
Kailash Gautam

सब जैसा का तैसा

कुछ भी बदला नहीं फ़लाने! सब जैसा का तैसा है सब कुछ पूछो, यह मत पूछो आम आदमी कैसा है? क्या सचिवालय, क्या न्यायालय सबका वही रवैया है, बाबू बड़ा...
Agyeya

जो पुल बनाएँगे

जो पुल बनाएँगे वे अनिवार्यतः पीछे रह जाएँगे। सेनाएँ हो जाएँगी पार मारे जाएँगे रावण जयी होंगे राम, जो निर्माता रहे इतिहास में बन्दर कहलाएँगे! अज्ञेय की कविता 'घृणा का गान' Book by Agyeya:
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