Tag: Common Man
सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है
सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो
सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती...
ग़ायब लोग
हम अक्षर थे
मिटा दिए गए
क्योंकि लोकतांत्रिक दस्तावेज़
विकास की ओर बढ़ने के लिए
हमारा बोझ नहीं सह सकते थे
हम तब लिखे गए
जब जन गण मन लिखा...
जनता का आदमी
बर्फ़ काटने वाली मशीन से आदमी काटने वाली मशीन तक
कौंधती हुई अमानवीय चमक के विरुद्ध
जलते हुए गाँवों के बीच से गुज़रती है मेरी कविता;
तेज़...
सन्नाटा
कलरव घर में नहीं रहा, सन्नाटा पसरा है,
सुबह-सुबह ही सूरज का मुँह उतरा-उतरा है।
पानी ठहरा जहाँ, वहाँ पर
पत्थर बहता है,
अपराधी ने देश बचाया
हाकिम कहता...
साधारण आदमी, प्रेम
साधारण आदमी
थोड़ा अजीब होता है शायद
एक साधारण आदमी होना
और कुछ साधारण से सपने देखना
जैसे भरपेट खाना
सुकून भरी नींद
या निहारना बारिश को बिना छत की...
वह भला आदमी
वह भला-सा आदमी
हमारे बीच की एक इकाई बन
कल तक हमारे साथ था।
वह चौराहे के इस ओर
मुँह में पान की गिल्लोरियाँ दबाए
चहका करता था यहाँ-वहाँ
खादी...
सब जैसा का तैसा
कुछ भी बदला नहीं फ़लाने!
सब जैसा का तैसा है
सब कुछ पूछो, यह मत पूछो
आम आदमी कैसा है?
क्या सचिवालय, क्या न्यायालय
सबका वही रवैया है,
बाबू बड़ा...
जो पुल बनाएँगे
जो पुल बनाएँगे
वे अनिवार्यतः
पीछे रह जाएँगे।
सेनाएँ हो जाएँगी पार
मारे जाएँगे रावण
जयी होंगे राम,
जो निर्माता रहे
इतिहास में
बन्दर कहलाएँगे!
अज्ञेय की कविता 'घृणा का गान'
Book by Agyeya: