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चींटी और मास्क वाले चेहरे
स्वप्न में दिखती है एक चींटी और मास्क वाले चेहरे
चींटी रेंगती है पृथ्वी की नाल के भीतर
मास्क वाले चेहरे घूमते हैं भीड़ में
सर से...
अशोक कुमार की कविताएँ
साथ रहना कितना आसान है
सबकी अपनी भाषा थी
पहाड़ों की अपनी
नदियों की अपनी
और हमारी अपनी अलग
मैं, पहाड़ और नदियाँ
फिर भी साथ-साथ रहे
सबसे सूखे दिनों को
उदासी...
उसकी आँखें खुली रहनी चाहिए थीं
(कोरोना से गुज़र गई एक अपरिचित की फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल से गुज़रते हुए)
8 मई, 2021
सत्ता है मछली की आँख
और दोनों कर्ता-धर्ता
अर्जुन और 'ठाकुर' बने थे
चूक...
कविताएँ: दिसम्बर 2020
1
हॉस्टल के अधिकांश कमरों के बाहर
लटके हुए हैं ताले
लटकते हुए इन तालों में
मैं आने वाला समय देख रहा हूँ
मैं देख रहा हूँ
कमरों के भीतर
अनियन्त्रित...
कुछ जोड़ी चप्पलें, इमाम दस्ता
कुछ जोड़ी चप्पलें
उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता कि
मनुष्य होने के दावे कितने झूठे पड़ चुके थे
तुम्हारी आत्म संलिप्त दानशीलता के बावजूद,
थोड़ा-सा भूगोल लिए आँखों में
वे बस...
लॉकडाउन समय
1
इस समय सबका दुःख साझा है
सुख,
किसी ग़लत पते पर फँसा हुआ शायद
सबकी प्रार्थनाओं में उम्मीद का प्रभात
संशय के बादल से ढका पड़ा है
समय
शोर को भेद...
रोटी की तस्वीर
यूँ तो रोटी किसी भी रूप में हो
सुन्दर लगती है
उसके पीछे की आग
चूल्हे की गन्ध और
बनाने वाले की छाप दिखायी नहीं देती
लेकिन होती हमेशा रोटी के...
तिथि दानी की कविताएँ
प्रलय के अनगिनत दिन
आज फिर एक डॉक्टर की मौत हुई
कल पाँच डॉक्टरों के मरने की ख़बरें आयीं
इनमें से एक स्थगित कर चुकी थी अपनी...
कोरोनावायरस और शिन्निन क्वायलो
कोरोनावायरस
फैला रहा है अपने अदृश्य पाँव
पहुँच चुका है वह
दुनिया के कई कोनों में
ताइवान में भी कुछ मामले सामने आ चुके हैं
इन दिनों दुनिया के...
प्रवासी मज़दूर
मैंने कब माँगा था तुमसे
आकाश का बादल
धरती का कोना
सागर की लहर
हवा का झोंका
सिंहासन की धूल
पुरखों की राख
या अपने बच्चे के लिए दूध
यह सब वर्जित...
पहली बार
इन दिनों
कैसी झूल रही गौरेया केबल तार पर
कैसा सीधा दौड़ रहा वह गली का डरपोक कुत्ता
कैसे लड़ पड़े बिल्ली के बच्चे चौराहे पर ही
कैसे...
कुमार मंगलम की कविताएँ
रात के आठ बजे
मैं सो रहा था उस वक़्त
बहुत बेहिसाब आदमी हूँ
सोने-जगने-खाने-पीने
का कोई नियत वक़्त नहीं है
ना ही वक़्त के अनुशासन में रहा हूँ कभी
मैं सो...