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पीठ
1
बोझा ढोते-ढोते
इस देश की पीठ
इतनी झुक गयी है
कि पलटकर किए जाने वाले काम
स्वतंत्रता या संविधान की तरह
माने जा चुके हैं
किसी पौराणिक गप्प का हिस्सा।
2
राजनीति—
नियमों...
सफ़ेद रात
पुराने शहर की इस छत पर
पूरे चाँद की रात
याद आ रही है वर्षों पहले की
जंगल की एक रात
जब चाँद के नीचे
जंगल पुकार रहे थे...
जिस दिन हमने अपना देश खोया
'लोकप्रिय आदिवासी कविताएँ' से
बचपन के मैग्नीफ़ाईंग ग्लास में
सबसे पहली झलक में देख पाता हूँ
अपनी ज़मीन के पास
किसी चट्टान पर बैठा हुआ ख़ुद को
मुझे याद...
होता रहता है वही
'पिछले दिनों' से
कुछ बातें हैं, जो इस देश में हमेशा होती रहती हैं। जैसे कोई विदेशी सत्ताधारी हवाई जहाज़ से उतरता है और हमारी...
देशगान
क्या ग़ज़ब का देश है, यह क्या ग़ज़ब का देश है।
बिन अदालत औ मुवक्किल के मुक़दमा पेश है।
आँख में दरिया है सबके
दिल में है...
मिट्टी
ताओयुआन एरपोर्ट से लगेज बैग लेकर
ज्यांगोंग रोड स्थित अपने नये ठिकाने पर आकर
सामान की जाँच करने पर मैंने पाया
सही सलामत बैग में रखे पहुँच गये...
अधिनायक वंदना
जन गण मन अधिनायक जय हे!
जय हे हरित क्रान्ति निर्माता
जय गेहूँ हथियार प्रदाता
जय हे भारत भाग्य विधाता
अंग्रेज़ी के गायक जय हे!
जन गण मन अधिनायक जय...
अपनी असुरक्षा से
यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना ज़मीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाए
आँख की पुतली में हाँ के सिवाय कोई भी...
नया शब्दकोश
कुछ तो है भीतर बेरंग बादल-सा
उमड़ता, घुमड़ता, गहराता, डराता
मैं ख़ुद की दहशत में हूँ
बेहद शान्त, भयभीत
जैसे कोई हारा हुआ खिलाड़ी
जैसे कोई ट्रेन से छूटा हुआ...
ज़िन्दगी
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
थान खद्दर के लपेटे स्वार्थियों को,
पेट-पूजा की कमाई में जुता मैं देखता हूँ!
सत्य के जारज सुतों को,
लंदनी गौरांग प्रभु...
मातृ और मातृभूमि
'Matr aur Matrbhoomi', poems by Harshita Panchariya
मेरे लिए मातृ और मातृभूमि में
इतना ही अन्तर रहा
जितना धर्म और ईश्वर में रहा
धर्म मानव बनने का ज़रिया...
देश
'Desh', Hindi Kavita by Vijay Rahi
देश एल्यूमीनियम की पुरानी घिसी एक देकची है
जो पुश्तैनी घर के भाई-बँटवारे में आयी।
लोकतंत्र चूल्हा है श्मशान की काली...