Tag: Creation
कविताएँ: नवम्बर 2020
विडम्बना
कितनी रोशनी है
फिर भी कितना अँधेरा है
कितनी नदियाँ हैं
फिर भी कितनी प्यास है
कितनी अदालतें हैं
फिर भी कितना अन्याय है
कितने ईश्वर हैं
फिर भी कितना अधर्म...
थके हुए कलाकार से
सृजन की थकन भूल जा देवता
अभी तो पड़ी है धरा अधबनी!
अभी तो पलक में नहीं खिल सकी
नवल कल्पना की मधुर चाँदनी,
अभी अधखिली ज्योत्सना की...
तोड़ने से कुछ बड़ा है
बनाना तोड़ने से कुछ बड़ा है
हमारे मन को हम ऐसा सिखाएँ
गढ़न के रूप की झाँकी सरस है
वही झाँकी जगत को हम दिखाएँ
बखेरें बीज ज़्यादा...
‘उस दुनिया की सैर के बाद’ से कविताएँ
'उस दुनिया की सैर के बाद' से
अपने ही रचे को
पहली बरसात के साथ ही
घरों से निकल पड़ते हैं बच्चे
रचने रेत के घर
घर बनाकर
घर-घर खेलते...
दुश्चक्र में स्रष्टा
कमाल है तुम्हारी कारीगरी का भगवान,
क्या-क्या बना दिया, बना दिया क्या से क्या!
छिपकली को ही ले लो,
कैसे पुरखों की बेटी
छत पर उलटा सरपट भागती
छलती...