Tag: Dalit Kavita

Abstract Painting of a woman, person from Sushila Takbhore book cover

आज की ख़ुद्दार औरत

तुमने उघाड़ा है हर बार औरत को मर्दो क्या हर्ज़ है इस बार स्वयं वह फेंक दे परिधानों को और ललकारने लगे तुम्हारी मर्दानगी को किसमें हिम्मत है जो उसे छू सकेगा? पिंजरे में...
Om Prakash Valmiki

रौशनी के उस पार

रौशनी के उस पार खुली चौड़ी सड़क से दूर शहर के किनारे गन्दे नाले के पास जहाँ हवा बोझिल है और मकान छोटे हैं परस्पर सटे हुए पतली वक्र-रेखाओं-सी गलियाँ जहाँ खो...
Jyoti Lanjewar

माँ

तुमको कभी नहीं देखा, जरी किनारी साड़ी में न गले में मोतियों की माला, न कंगन कड़े पहने रबड़ की चप्पलें तक नहीं तुम्हारे पैरों में झुलसती...

वृक्ष

यातना भार से व्याकुल वृक्ष को देखा मैंने वोधिवृक्ष जैसी इसकी जड़ें गहरी हैं बोधित वृक्ष पर तो फूल भी खिले यह वृक्ष सभी ऋतुओं में झुलसा...
Yendluri Sudhakar

खून का सवाल

मैं अभी भी निषेधित मानव हूँ साँस मेरी बहिष्कृत है मेरी कटि को ताड़ के पत्तों से लपेटकर मेरे मुँह पर उगलदान लटकाकर लोगों के बीच मुझे असह्य मानव-पशु...
Woman Abstract

गोरैया

मैं कंटीली झाड़ियों में फँसकर तड़पने वाली गोरैया हूँ किसी भी तरफ़ हिलूँ काँटे चुभेंगे मुझे ही ये आज के काँटे नहीं हैं पीढ़ियों से मेरे इर्द-गिर्द फैलायी ग़ुलामी की ज़ंजीरें हैं आगे कुआँ, पीछे...

द्रोणाचार्य सुनें, उनकी परम्पराएँ सुनें

सुनो! द्रोण सुनो! एकलव्य के दर्द में सनसनाते हुए घाव को महसूसता हूँ एक बारगी दर्द हरियाया है स्नेह नहीं, गुरू ही याद आया है जिसे मैंने हृदय में...
Jaiprakash Kardam

आज का रैदास

शहर में कालोनी कालोनी में पार्क, पार्क के कोने पर सड़क के किनारे जूती गाँठता है रैदास पास में बैठा है उसका आठ वर्ष का बेटा पूसन फटे-पुराने कपड़ों में लिपटा उसके...
Malkhan Singh

सुनो ब्राह्मण

'Suno Brahman', Hindi Kavita by Malkhan Singh (1) हमारी दासता का सफर तुम्हारे जन्म से शुरू होता है और इसका अन्त भी तुम्हारे अन्त के साथ होगा। (2) सुनो ब्राह्मण हमारे पसीने...
Abstract Painting of a woman, person from Sushila Takbhore book cover

विद्रोहिणी

माँ बाप ने पैदा किया था गूँगा! परिवेश ने लंगड़ा बना दिया चलती रही निश्चित परिपाटी पर बैसाखियों के सहारे कितने पड़ाव आए! आज जीवन के चढ़ाव पर बैसाखियाँ चरमराती हैं अधिक बोध...
Dalits - The Untouchables

अभिलाषा

'Abhilasha', a poem by N R Sagar हाँ-हाँ मैं नकारता हूँ ईश्वर के अस्तित्व को संसार के मूल में उसके कृतित्व को विकास-प्रक्रिया में उसके स्वत्व को प्रकृति के...
Janpath

जनपथ

'Janpath', a poem by Jaiprakash Leelwan वर्णाश्रम की जाँघ चाटने वाले सतयुगी शासक अब राजपथ के इर्द-गिर्द बनी माँदों में घुस चुके हैं। पक रही है यहाँ मृत इतिहास की...
कॉपी नहीं, शेयर करें! ;)