Tag: Dalit Kavita
आज की ख़ुद्दार औरत
तुमने उघाड़ा है
हर बार औरत को
मर्दो
क्या हर्ज़ है
इस बार स्वयं वह
फेंक दे परिधानों को
और ललकारने लगे
तुम्हारी मर्दानगी को
किसमें हिम्मत है
जो उसे छू सकेगा?
पिंजरे में...
रौशनी के उस पार
रौशनी के उस पार
खुली चौड़ी सड़क से दूर
शहर के किनारे
गन्दे नाले के पास
जहाँ हवा बोझिल है
और मकान छोटे हैं
परस्पर सटे हुए
पतली वक्र-रेखाओं-सी गलियाँ
जहाँ खो...
माँ
तुमको कभी नहीं देखा, जरी किनारी साड़ी में
न गले में मोतियों की माला, न कंगन कड़े पहने
रबड़ की चप्पलें तक नहीं तुम्हारे पैरों में
झुलसती...
वृक्ष
यातना भार से व्याकुल वृक्ष को देखा मैंने
वोधिवृक्ष जैसी इसकी जड़ें गहरी हैं
बोधित वृक्ष पर तो फूल भी खिले
यह वृक्ष सभी ऋतुओं में झुलसा...
खून का सवाल
मैं अभी भी निषेधित मानव हूँ
साँस मेरी बहिष्कृत है
मेरी कटि को ताड़ के पत्तों से लपेटकर
मेरे मुँह पर उगलदान लटकाकर
लोगों के बीच मुझे
असह्य मानव-पशु...
गोरैया
मैं कंटीली झाड़ियों में फँसकर
तड़पने वाली गोरैया हूँ
किसी भी तरफ़ हिलूँ
काँटे चुभेंगे मुझे ही
ये आज के काँटे नहीं हैं
पीढ़ियों से मेरे इर्द-गिर्द फैलायी
ग़ुलामी की ज़ंजीरें हैं
आगे कुआँ, पीछे...
द्रोणाचार्य सुनें, उनकी परम्पराएँ सुनें
सुनो! द्रोण सुनो!
एकलव्य के दर्द में सनसनाते हुए घाव को
महसूसता हूँ
एक बारगी दर्द हरियाया है
स्नेह नहीं, गुरू ही याद आया है
जिसे मैंने हृदय में...
आज का रैदास
शहर में कालोनी
कालोनी में पार्क,
पार्क के कोने पर
सड़क के किनारे
जूती गाँठता है रैदास
पास में बैठा है उसका
आठ वर्ष का बेटा पूसन
फटे-पुराने कपड़ों में लिपटा
उसके...
सुनो ब्राह्मण
'Suno Brahman', Hindi Kavita by Malkhan Singh
(1)
हमारी दासता का सफर
तुम्हारे जन्म से शुरू होता है
और इसका अन्त भी
तुम्हारे अन्त के साथ होगा।
(2)
सुनो ब्राह्मण
हमारे पसीने...
विद्रोहिणी
माँ बाप ने पैदा किया था
गूँगा!
परिवेश ने लंगड़ा बना दिया
चलती रही
निश्चित परिपाटी पर
बैसाखियों के सहारे
कितने पड़ाव आए!
आज जीवन के चढ़ाव पर
बैसाखियाँ चरमराती हैं
अधिक बोध...
अभिलाषा
'Abhilasha', a poem by N R Sagar
हाँ-हाँ मैं नकारता हूँ
ईश्वर के अस्तित्व को
संसार के मूल में उसके कृतित्व को
विकास-प्रक्रिया में उसके स्वत्व को
प्रकृति के...
जनपथ
'Janpath', a poem by Jaiprakash Leelwan
वर्णाश्रम की जाँघ चाटने वाले
सतयुगी शासक अब
राजपथ के इर्द-गिर्द बनी
माँदों में घुस चुके हैं।
पक रही है यहाँ
मृत इतिहास की...