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अख़बार, मानकीकरण, देवदास
Poems: Gaurav Bharti
अख़बार
वेंडर
सुबह-सुबह
हर रोज़
किवाड़ के नीचे से
सरका जाता है अख़बार
हाथ से छूटते हुए
ज़मीं को चूमते हुए
फिसलते हुए
अख़बार
एक जगह आकर ठहर जाता है
इंतज़ार में
अख़बार
इश्तहार के साथ-साथ
अपने...