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‘खोई चीज़ों का शोक’ से कविताएँ
सविता सिंह का नया कविता संग्रह 'खोई चीज़ों का शोक' सघन भावनात्मक आवेश से युक्त कविताओं की एक शृंखला है जो अत्यन्त निजी होते...
दूरियों से कोई पीड़ा ख़त्म नहीं होती
'Dooriyon Se Koi Peeda Khatm Nahi Hoti', a poem by Rakhi Singh
कई दिनों से
कलाई के पास की नस में तीखा-सा दर्द रह रहा है
डॉक्टर...
दूरियाँ
'Dooriyan', poems by Shweta Rai
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आगे बढ़ जाने से ज़्यादा दुरूह होता है
पीछे मुड़कर न देखना
ज़रा-सी शिथिल होती देह में उग आता है बीमार मन
जो जानता...
अभी निकटता बहुत दूर है
'Abhi Nikatata Bahut Door Hai', Hindi Kavita by Balbir Singh Rang
अभी निकटता बहुत दूर है,
अभी सफलता बहुत दूर है,
निर्ममता से नहीं, मुझे तो ममता...
उस दूर खो गए युग की याद में
...तुझे याद है प्रेयसी, एक बार जब
'अलापत्थर झील' के निर्मल शीतल जल प्रसार
की ढलान पर, आ उतरी थी सेना सी
पिकनिक करने, हम सबके परिवारों...
देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करना
देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करना
शेवा-ए-इश्क़ नहीं हुस्न को रुस्वा करना
इक नज़र भी तेरी काफ़ी थी प-ए-राहत-ए-जाँ
कुछ भी दुश्वार न था मुझको...
मैं तुम लोगों से दूर हूँ
यह कविता यहाँ सुनें:
https://youtu.be/0UzY9lHWRUw
'Main Tum Logon Se Door Hoon', a poem by Gajanan Madhav Muktibodh
मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ
तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी...
दूर जाकर न कोई बिसारा करे
दूर जाकर न कोई बिसारा करे,
मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे।
यूँ बिछड़कर न रतियाँ गुज़ारा करे,
मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे।
मन मिला तो जवानी रसम तोड़ दे,
प्यार निभता...
अपने आँगन से दूर
विभाजन के बाद जिन शरणार्थियों का जहाँ दाव लगा, उन्होंने उन घरों और वस्तुओं पर अधिकार कर लिया, और यह सरहद के दोनों तरफ हुआ! ऐसे में आलिया को क्या पता कि उसके मामू उसे किन के घर ले आए हैं और यह जो मूर्ति रखी है, जिसके आसपास फूल पड़े हैं और एक पीला डोरा लटक रहा है, यह कोई ख़ास मूर्ति है या सिर्फ एक खिलौना!
दूरियाँ
"जमाना जिसे ग़ुमराही कहता है, पाँवों को रौंदता हुआ दिल उसे सुकून कहता है।"
"किसी छत की सीढ़ियों से जब कोई बच्चा तेज़ी से उतरता है तो दिल दहलता है और मुँह से डाँट और हिदायतें निकलती हैं। शायद सब ऐसे ही सीखते हैं। छत से फ़र्श तक की दूरी दहलते-दहलाते पूरी कर ही ली जाती है, कभी चोट खाकर, कभी यूँ ही। सबको ख़बर होती है कि लौटकर फ़र्श पर आना ही है।"
लॉन्ग-डिस्टेन्स रिलेशनशिप
तुम ये खिड़की देख रहे हो न
इसी में से आता-जाता है चाँद
बादलों से चोरी-छुपे
आसमान से झूठ बोल के
मेरे कमरे में
रौशनी बिखेर देता है
और पता...
दूर किनारा
फैली धरती के सीने पे जंगल भी हैं लहलहाते हुए
और दरिया भी हैं दूर जाते हुए
और पर्वत भी हैं अपनी चुप में मगन
और सागर भी...