Tag: Domestic Violence
परम्परा
मैं स्त्री हूँ
जानती हूँ
मुझे बहुत-सा ग़ुस्सा सहना पड़ा था
जो वस्तुतः मेरे लिए नहीं थाबहुत-सा अपमान
जिसे मुझ पर थूकता हुआ इंसान
पगलाए होने के बावजूद
मुझ पर नहीं
कहीं...
स्त्रियों के हिस्से का सुख
जब कि बरसों बाद
स्त्रियों के हिस्से आया है
पुरुषों के संग रहने का सुख
तो फिर आँकड़े क्यूँ कह रहे हैं
कि स्त्रियाँ सबसे अधिक उदास इन दिनों...
सभ्य था वो
वो बड़ा सभ्य था,
कभी लुगाई पर हाथ न उठाता,
बस उसके मुँह पर थूक देता था।वो भी बड़ी संस्कारी,
कभी चूँ तक न की,
बस सधे हाथ...
हस्तक्षेप का अपराधी
'Hastakshep Ka Apradhi', a poem by Shravanरातों के सन्नाटों में
किसी चमगादड़-सी डराती हुई
एक चीख़ शृंखलाबद्ध रूप से
मेरे कानों में आकर थम जाती है,
सिसकियों से गूँजने...
त्रियाचरित्र
'Triyacharitra', a poem by Ruchiकुछ औरतें भोली होती हैं,
काले-नीले निशानों को छिपाते, होंठों पर हँसी चिपकाते,
सुखद दाम्पत्य से अघायी रहती हैं।पर कुछ बड़ी चंट होती...