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श्रीविलास सिंह की कविताएँ
सड़कें कहीं नहीं जातीं
सड़कें कहीं नहीं जातीं
वे बस करती हैं
दूरियों के बीच सेतु का काम,
दो बिंदुओं को जोड़तीं
रेखाओं की तरह,
फिर भी वे पहुँचा देती...
हारुकी मुराकामी की कहानी ‘सातवाँ आदमी’
कहानी: 'सातवाँ आदमी'
लेखक: हारुकी मुराकामी
जापानी से अनुवाद: क्रिस्टोफ़र एलिशन
हिन्दी अनुवाद: श्रीविलास सिंह
"वह मेरी उम्र के दसवें वर्ष के दौरान सितम्बर का एक अपराह्न था...
मध्यरात्रि
मध्यरात्रि में आवाज़ आती है 'तुम जीवित हो?'
मध्यरात्रि में बजता है पीपल
ज़ोर-ज़ोर से घिराता-डराता हुआ
पतझड़ के करोड़ों पत्ते
मध्यरात्रि में उड़ते चले आते हैं
नींद की...
बारिश की रात
आरा शहर। भादों का महीना। कृष्ण पक्ष की अँधेरी रात। ज़ोरों की बारिश। हमेशा की भाँति बिजली का गुल हो जाना। रात के गहराने...
भय
बेरौनक़ रहता है अब वो चेहरा अक्सर
ईश्वर की अक़ीदत में हो जाते थे सुर्ख़ जिसके गाल कभी
एक अजीब भय में तब्दील होने लगती हैं उसकी...
ज़िन्दगी से डरते हो
ज़िन्दगी से डरते हो!
ज़िन्दगी तो तुम भी हो, ज़िन्दगी तो हम भी हैं!
ज़िन्दगी से डरते हो?
आदमी से डरते हो
आदमी तो तुम भी हो, आदमी...
निशान, डर
निशान
वहाँ से तुम्हारे जाने के बाद,
एक घटना दो तरीक़े से घटी।
प्रेमियों ने कहा,
तुम्हारे द्वारा छोड़े गए निशान तुम्हारे पाँवों के हैं
गिरमिटियों ने कहा,
तुम्हारे जूतों के...
एकता प्रकाश की कविताएँ
Poems: Ekta Prakash
डर
जब आप किसी अपने को खोने से डरते हैं
भय आपको खाता है,
ख़ामोशी आकर चुपके-से
ओठों को सील जाती है,
गूँगा बनना आपके लिए
उस वक़्त बेहतर...
डर लगता है
'Dar Lagta Hai', a nazm by Shahbaz Rizvi
जागती आँखें
नींद से बोझल
ख़्वाब की जुम्बिश
सर्द हवाएँ
काली रातें
डर लगता था... डर लगता है!
सुबह की किरणें
रेंगते बादल
ओस के...
फ़ोबिया
'Phobia', a poem by Mukesh Kumar Sinha
जब भी उछालो सिक्का
तो दिखने वाला हेड या टेल ही होता है विजयी
नहीं नजर आ पाता छिपा हुआ...
भराव
भय इतना व्याप्त हो गया है कि
आदमी शरण लेने के लिए तलाशता है
ऐसा कोई गुप्त स्थान
जहाँ नहीं पहुँच पाती कोई रोशनी।
आदमी पहुँच जाता है
एक...