Tag: Gajanan Madhav Muktibodh
टी. एस. ईलियट के प्रति
पढ़ रहा था कल तुम्हारे काव्य कोऔर मेरे बिस्तरे के पास
नीरव टिमटिमाते दीप के
नीचे अँधेरे में घिरे
भोले अँधेरे में घिरे सारे सुझाव, गहनतम संकेत!
जाने...
मलय के नाम मुक्तिबोध का पत्र
राजनाँद गाँव
30 अक्टूबर
प्रिय मलयजीआपका पत्र यथासमय मिल गया था। पत्रों द्वारा आपके काव्य का विवेचन करना सम्भव होते हुए भी मेरे लिए स्वाभाविक नहीं...
तुम्हारी असलियत
तुम्हारी असलियत की संगदिल ख़ूँख़ार छाती पर
हमारी असलियत बेमौत हावी है।
तुम्हारी मौत आयी है
हमारे हाथ से होगी,
सुलगते रात में जंगल, लपट-से लाल,
गहरा लाल काला...
शमशेर बहादुर सिंह के नाम पत्र
शमशेर बहादुर सिंह को मुक्तिबोध का पत्र
घर न० 86, विष्णु दाजी गली,
नई शुक्रवारी, सरकल न० 2
नागपुर
प्रिय शमशेर,कुछ दिन पूर्व श्री प्रभाकर पुराणिक को लिखे...
प्रश्न
एक लड़का भाग रहा है। उसके तन पर केवल एक कुर्ता है और एक धोती मैली-सी! वह गली में भाग रहा है मानो हज़ारों...
जनता का साहित्य किसे कहते हैं?
ज़िन्दगी के दौरान जो तजुर्बे हासिल होते हैं, उनसे नसीहतें लेने का सबक़ तो हमारे यहाँ सैकड़ों बार पढ़ाया गया है। होशियार और बेवक़ूफ़...
एक-दूसरे से हैं कितने दूर
एक-दूसरे से हैं कितने दूर कि जैसे
बीच सिन्धु है, एक देश के शैल-कूल पर खड़ा हुआ मैं
और दूसरे देश-तीर पर खड़ी हुईं तुम।
फिर भी...
बहुत दिनों से
मैं बहुत दिनों से, बहुत दिनों से
बहुत-बहुत-सी बातें तुमसे चाह रहा था कहना
और कि साथ यों साथ-साथ
फिर बहना, बहना, बहना
मेघों की आवाज़ों से
कुहरे की...
ब्रह्मराक्षस का शिष्य
'Brahmarakshas Ka Shishya', a story by Gajanan Madhav Muktibodhउस महाभव्य भवन की आठवीं मंज़िल के ज़ीने से सातवीं मंज़िल के ज़ीने की सूनी-सूनी सीढ़ियों पर...
मैं उनका ही होता
मैं उनका ही होता जिनसे
मैंने रूप भाव पाए हैं।
वे मेरे ही हिये बँधे हैं
जो मर्यादाएँ लाए हैं।
मेरे शब्द, भाव उनके हैं
मेरे पैर और पथ मेरा,
मेरा...
तुम्हारा पत्र आया
तुम्हारा पत्र आया, या
अँधेरे द्वार में से झाँककर कोई
झलक अपनी, ललक अपनी
कृपामय भाव-द्युति अपनी
सहज दिखला गया मानो
हितैषी एक!
हमारे अन्धकाराच्छन्न जीवन में विचरता है
मनोहर सौम्य...
जंक्शन
रेलवे स्टेशन, लम्बा और सूना! कड़ाके की सर्दी! मैं ओवरकोट पहने हुए इत्मीनान से सिगरेट पीता हुआ घूम रहा हूँ।मुझे इस स्टेशन पर अभी...