Tag: स्त्री
क्या करूँ
क्या करूँ मैं
आसमां को अपनी मुट्ठी में पकड़ लूँ
या समुन्दर पर चलूँ
पेड़ के पत्ते गिनूँ
या टहनियों में जज़्ब होते
ओस के क़तरे चुनूँ
डूबते सूरज को
उंगली...
एक जीवी, एक रत्नी, एक सपना
'हाय री स्त्री, डूबने के लिए भी तैयार है, यदि तेरा प्रिय एक सागर हो!'
'फिर उस लड़की का भी वही अंजाम हुआ, जो उससे पहले कई और लड़कियों का हो चुका था और उसके बाद कई और लड़कियों का होना था। वह लड़की बम्बई पहुँचकर कला की मूर्ती नहीं, कला की कब्र बन गई, और मैं सोच रही थी, यह रत्नी.. यह रत्नी क्या बनेगी?'
सिंड्रेला
सुनो लड़की!
इस बार कोयले की राख को पेशानी पर रगड़ लेना
हालात की सौतेली बहनों से समझौता तुम कर लेना
नहीं आएगी परी कोई तुम्हारा मुस्तक़बिल...
ये वो धरती नहीं है
नहीं ये वो धरती नहीं है
नहीं ये वो धरती नहीं है जहाँ मेरा बचपन
मेरा तितलीयों, फूलों, रंगों से लबरेज़ बचपन
किसी शाहज़ादी की रंगीं कहानी...
क़ैद में रक़्स
सब के लिए ना-पसंदीदा उड़ती मक्खी
कितनी आज़ादी से मेरे मुँह और मेरे हाथों पर बैठती है
और इस रोज़-मर्रा से आज़ाद है जिस में मैं...
हर औरत को पता होना चाहिए
'Things Every Woman Should Have And Should Know', a poem By Pamela Redmond Satran
अनुवाद: पुनीत कुसुम
एक औरत के पास
होना चाहिए पर्याप्त धन, अपने घर...
सैक्स फंड
'सैक्स फंड' - सुषमा गुप्ता
"आंटी जी चंदा इकठ्ठा कर रहें हैं। आप भी कुछ अपनी इच्छा से दे दीजिए।"
"अरे लड़कियों, ये काॅलेज छोड़ कर...
लिहाफ
जब मैं जाड़ों में लिहाफ ओढ़ती हूँ तो पास की दीवार पर उसकी परछाई हाथी की तरह झूमती हुई मालूम होती है। और एकदम...
अंकल, आई एम तिलोत्तमा!
'पहचान और परवरिश'
कौन है ये?
मेरी बिटिया है,
इनकी भतीजी है,
मट्टू की बहन है,
वी पी साहब की वाइफ हैं,
शर्मा जी की बहू है।
अपने बारे में भी...
सती
प्रेम माने क्या है पता है मित्र?
मात्र मेरे होंठ, कटि सहलाकर
रमना नहीं
मात्र बातों का महल बना
उसमें दफ़ना देना नहीं।
आओ कम-से-कम एक बार
भीगो मेरे आँसुओं...
मैं समर अवशेष हूँ
'कुरुक्षेत्र' कविता और 'अँधा युग' व् 'ताम्बे के कीड़े' जैसे नाटक जिस बात को अलग-अलग शैलियों और शब्दों में दोहराते हैं, वहीं एक दोस्त...
स्वयं हेतु
अनुवाद: पुनीत कुसुम
एक
मैं अपनी डायरी में कुछ बेतरतीब शब्द लिखती हूँ
और कहती हूँ उसे बाइबिल
जिसमें 'प्रेम' अन्तिम शब्द है
दो
'यकीन' जैसे शब्दों के नीचे मैं...